चलते-चलते पैर में कांटा चुभ गया, पीड़ा दे रहा है, पीड़ा दूर होगी कांटा निकालने से। उसे और अधिक भीतर चुभायेंगे तो पीड़ा और अधिक होगी इसी प्रकार किसी से विवाद हो गया तो उससे द्वेष हो गया।
ऐसा होना स्वाभाविक है, जिससे विवाद हुआ है उसकी हानि करने, उसे मिटाने की सोच रहे हो तो लगा हुआ कांटा और अधिक भीतर चुभा रहे हो। वह भी आपका बुरा करने की सोच रहा होगा। बुरा हो पायेगा या नहीं यह बाद की बात है, परन्तु चित्त में अशुद्धता तो बढ़ती जायेगी। उसे क्षमा कर आप कल्याण की सोचिए, आपके हृदय से शूल निकल जायेगा।
कांटे की पीड़ा कांटा निकालने से दूर होगी। अधिक भीतर घुसाने से तो पीड़ा सालती रहेगी। झगड़े से पैदा हुआ द्वेष झगड़ा समाप्त कर दूर होगा अन्यथा एक-दूसरे को नष्ट करने के कुविचारों से दोनों पक्ष समाप्त हो जायेंगे। आपका हित इसी में है कि विनम्रता, सहनशीलता तथा क्षमा शीलता को अपनाये।
विनम्र भाव से परमात्मा से अपनी और विरोधी की त्रुटियों को भी क्षमा करने की प्रार्थना करे। इस प्रकार की गई प्रार्थना आपके अहंकार को समाप्त कर देेगी। अहंकार का विसर्जन हमें मानसिक शान्ति देगा। हम दूसरों के लिए सोचेंगे तो अच्छा ही सोचेंगे। हम सबके शुभ की कामना करेंगे तो प्रभु हम पर कृपालु होगा।