Tuesday, February 25, 2025

अनमोल वचन

हमें सर्वप्रथम यह निश्चित कर लेना चाहिए कि कौन इच्छाएं जिनकी पूर्ति होने पर हमारा विकास सम्भव है और कौन ऐसी इच्छाएं हमारे भीतर पैदा हो गई, जो विकास में बाधक हो सकती है, परन्तु यह नीर क्षीर विवेक तभी आ पायेगा, जब हमारी बुद्धि अनुशासित होगी, बुद्धि का अनुशासन हमारा पवित्र उद्देश्य होना चाहिए। एक सामान्य व्यक्ति को अकस्मात कोई सफलता अथवा इच्छा पूर्ति हो जाये तो उसमें अहम तत्व के पैदा होने की सम्भावना हो जाती है। वह सोचता है कि मैंने वह प्राप्त कर लिया है, जो दूसरे प्राप्त नहीं कर पाये। मैं दूसरों से अधिक बुद्धिमान हूं, दूसरों से श्रेष्ठ हूं, परन्तु धीरे-धीरे यह भाव ही उसे अवनति के गर्त में धकेल देता है। इसके समानान्तर जो असफल हो जाता है, उसमें असफलता ईर्ष्या का भाव पैदा कर सती है। दूसरे की उपलब्धि उसे ईर्ष्यालु बना देती है। वह दूसरे सफल व्यक्ति से जलता है, कुढता है, अपनी असमर्थता के लिए अपनी भत्र्सना करता है, परन्तु हमें समझना चाहिए कि हमने वही तो प्राप्त करना है, जो बोया है। जो मिलना है, उससे अधिक मिलेगा नहीं। इस यथार्थ को जान लो शान्ति मिलेगी।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,854FansLike
5,486FollowersFollow
143,143SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय