बाल कथा: तालाब रूठ गया
एक पेड़ में एक गिलहरी का परिवार रहता था। उनकी एक बच्ची थी, जिसका नाम नीनी था। कुछ ही दूरी पर एक बिल में चूहा परिवार रहता था। उनके दो बच्चे थे, चिर और कुट। तीनों बच्चे शाम को साथ-साथ खेलते थे। एक दिन शाम को तेज बारिश हुई थी जिससे मौसम ठंडा हो गया […]
एक पेड़ में एक गिलहरी का परिवार रहता था। उनकी एक बच्ची थी, जिसका नाम नीनी था। कुछ ही दूरी पर एक बिल में चूहा परिवार रहता था। उनके दो बच्चे थे, चिर और कुट। तीनों बच्चे शाम को साथ-साथ खेलते थे। एक दिन शाम को तेज बारिश हुई थी जिससे मौसम ठंडा हो गया था। चिर और कुट दोपहर को सोकर शाम को उठे और मां ने उन्हें दाने खाने को दिए। दाने खाकर जब वे खेलने जाने लगे तो मां ने समझाया, ‘प्यार से खेलना, लड़ाई न करना।‘
तीनों बच्चे पत्ते लाने दौड़ पड़े। कुछ देर बाद पत्ते पानी में थे, लेकिन बहते पानी और हवा न होने के कारण पत्ते वहीं पड़े रहे। चिर ने पत्थर उठाकर नीनी के पत्ते पर मार दिया। नीनी का पत्ता डूब गया और वह झगड़ने लगी। कुट ने समझाया, ‘यह झगड़ा बंद करो। इस पत्ते वाले खेल में मजा नहीं आया। चलो, कोई दूसरा खेल खेलते हैं।‘ नीनी ने पूछा, ‘पर क्या?‘ कुट ने कहा, ‘क्यों न हम इस तालाब में पत्थर फेंकें और देखें कि किसके पत्थर से सबसे ज्यादा पानी ऊपर उछलता है।‘
तीनों पत्थर लाने दौड़ पड़े और अपने-अपने पत्थर फेंकने लगे। झगड़ा बढ़ता गया और अंत में मारपीट तक पहुंच गया। अगले दो दिन तक वे गुस्से के मारे खेलने नहीं गए। इस बीच गड्ढे का पानी पीने से सूख गया। जब बच्चे खेलने निकले, तो तालाब गायब देखकर हैरान रह गए। उन्होंने सोचा कि हमारा झगड़ा देखकर तालाब हमसे रूठकर चला गया है। उन्होंने तय किया कि अब वे प्यार से खेलेंगे और तालाब के लौटने का इंतजार करेंगे।
नरेन्द्र देवांगन
संबंधित खबरें
लेखक के बारे में
रॉयल बुलेटिन उत्तर भारत का प्रमुख हिंदी दैनिक है, जो पाठकों तक स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय खबरें तेज़, सटीक और निष्पक्ष रूप में पहुँचाता है, हिंदी पत्रकारिता का एक भरोसेमंद मंच !
