बच्चों को जिम्मेदारी का बोध करवाएं

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बच्चों में जिम्मेदारी और जीवन के प्रति संजीदगी का बोध करवाना प्रत्येक माता-पिता का कर्तव्य है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि बच्चे जीवन की हर परिस्थिति का सामना कर सकें। इसके लिए जरूरी है कि बच्चों में छोटी उम्र से ही जिम्मेदारी का बोध डाला जाए। बचपन से ही जिम्मेदारी का बोध: जब बच्चा […]

बच्चों में जिम्मेदारी और जीवन के प्रति संजीदगी का बोध करवाना प्रत्येक माता-पिता का कर्तव्य है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि बच्चे जीवन की हर परिस्थिति का सामना कर सकें। इसके लिए जरूरी है कि बच्चों में छोटी उम्र से ही जिम्मेदारी का बोध डाला जाए।

बचपन से ही जिम्मेदारी का बोध: जब बच्चा तीन साल का होता है, तब वह छोटी-छोटी बातों को सीखने के काबिल हो जाता है। यह वह समय होता है जब माता-पिता उसे जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक कर सकते हैं। सबसे पहले बच्चों को यह सिखाया जाना चाहिए कि वे बड़ों का सम्मान करें। बच्चों को यह समझाना चाहिए कि बड़ों का सम्मान करने से समाज में उनकी एक अलग पहचान बनेगी। इसके साथ ही, बच्चों को यह भी सिखाना चाहिए कि वे निर्धारित जगह पर मल-मूत्र करें। इससे उनमें स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।

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आत्मनिर्भरता की दिशा में पहला कदम: बच्चों को यह सिखाया जाना चाहिए कि वे भूख लगने पर बड़ों से खाना मांगें और निर्धारित जगह पर बैठकर खाना खाएं। इससे उनमें अनुशासन की भावना विकसित होगी। बच्चों को यह भी सिखाना चाहिए कि चीजों को इस्तेमाल करने के बाद उन्हें सही जगह पर रखें। इससे उनमें व्यवस्था और सफाई की आदत पड़ेगी। खिलौनों को संभालकर रखना भी बच्चों को सिखाना चाहिए। यह उन्हें उनकी चीजों का महत्व समझाएगा और जिम्मेदारी का बोध कराएगा।

पांच साल की उम्र में जिम्मेदारियों का विस्तार: जब बच्चा पांच साल का हो जाता है, तो उसे और भी कई जिम्मेदारियां सौंपी जा सकती हैं। उसे यह सिखाना चाहिए कि वह सही समय पर नहाए-धोए, समय पर खाए-पीए, पढ़ाई-लिखाई करे, खेले-कूदे और स्कूल जाए। इससे बच्चे में समय का महत्व समझ में आएगा और वह अपने कार्यों को प्राथमिकता देना सीखेगा।

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दस साल की उम्र में आत्मनिर्भरता: जब बच्चा दस साल का हो जाता है, तो उसे अपनी जिम्मेदारियों को और भी बेहतर तरीके से निभाना सिखाया जा सकता है। उसे नहाने के बाद अपने कपड़े धोने, खाना खाने के बाद अपनी थाली, प्लेट, गिलास आदि को सही जगह पर रखने और घर की तमाम चीजों को व्यवस्थित करने जैसे काम सिखाए जा सकते हैं। इससे बच्चे में आत्मनिर्भरता की भावना विकसित होगी।

ग्यारह साल की उम्र में सामाजिक और आर्थिक जिम्मेदारियां: ग्यारह साल का बच्चा अपने आस-पास स्थित बाजार और दुकानों से छोटी-मोटी खरीदारी कर सकता है और माता-पिता को सहयोग दे सकता है। उसे बागवानी करने और अखबार पढ़ने की आदत डालनी चाहिए। अखबार पढ़ने से बच्चा देश-विदेश की खबरों से अवगत रहेगा और सामाजिक-राजनीतिक हलकों को समझ सकेगा।

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अठारह साल की उम्र में आर्थिक आत्मनिर्भरता: जब बच्चा अठारह साल का हो जाता है, तो वह ट्यूशन आदि से अपने लिए जेब खर्च निकालने के काबिल हो सकता है। यह उसे आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाएगा और उसे अपने खर्चों का महत्व समझ में आएगा। यह भी महत्वपूर्ण है कि माता-पिता लड़के और लड़की में भेदभाव न करें और किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाएं। उनका उद्देश्य हर एक को जीवन की मुख्यधारा से जोड़ना होना चाहिए।

सुधार की दिशा में निरंतर प्रयास: माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के साथ संवाद करें और उनकी समस्याओं को सुनें। बच्चों को हर छोटी-बड़ी समस्या के समाधान में शामिल करें और उन्हें समस्या सुलझाने की कला सिखाएं। इससे बच्चे में आत्मविश्वास बढ़ेगा और वह जीवन की हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहेगा।

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बाल्यकाल में संस्कार: बच्चों को बचपन से ही अच्छे संस्कार दिए जाने चाहिए। उन्हें धर्म, संस्कृति और परंपराओं की जानकारी दें और उन्हें इनका पालन करने के लिए प्रेरित करें। इससे बच्चे में नैतिकता और सभ्यता की भावना विकसित होगी।

प्रोत्साहन का महत्व: बच्चों को समय-समय पर उनके अच्छे कामों के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे और भी बेहतर तरीके से काम करने के लिए प्रेरित होंगे। प्रोत्साहन से बच्चे का मानसिक विकास होता है और वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मेहनत करता है।

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बच्चों में जिम्मेदारी का बोध और आत्मनिर्भरता की भावना विकसित करना आसान नहीं है, लेकिन यह संभव है। इसके लिए माता-पिता को बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए और उन्हें हर छोटी-बड़ी बात सिखानी चाहिए। बच्चों को हर जिम्मेदारी का महत्व समझाएं और उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करें। इससे बच्चे जीवन की हर चुनौती का सामना कर सकेंगे और एक सफल व्यक्ति बन सकेंगे।

माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वे बच्चों को जीवन की मुख्यधारा से जोड़ें और उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनाएं। बच्चों को जिम्मेदारी का बोध कराना और आत्मनिर्भर बनाना उन्हें एक सफल और संजीदा व्यक्ति बनाने की दिशा में पहला कदम है।

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