गाजियाबाद की डासना जेल में शिक्षा की नई रोशनी, कैदियों को दी जा रही है नई जिंदगी की दिशा
गाजियाबाद। देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद को समर्पित राष्ट्रीय शिक्षा दिवस, जो हर साल 11 नवंबर को मनाया जाता है, सिर्फ़ बाहर ही नहीं बल्कि गाजियाबाद की डासना जेल के अंदर भी शिक्षा की मशाल जला रहा है। जेल प्रशासन यहाँ विचाराधीन बंदी और सज़ायाफ्ता कैदियों को शिक्षा और कौशल विकास के अवसर प्रदान कर रहा है, ताकि वे समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें।
सुपरिंटेंडेंट शर्मा ने जानकारी दी कि डासना जेल में बंदियों (महिला और पुरुष दोनों) के लिए शिक्षा की हर प्रकार से व्यवस्था की गई है। जेल के अंदर एक कंप्यूटर लैब स्थापित की गई है जहाँ बंदियों को कंप्यूटर कोर्स करवाए जाते हैं। वे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) के कोर्स भी करते हैं। बंदियों के लिए एक पुस्तकालय भी बनाया गया है जहाँ वे अपनी पढ़ाई करते हैं। कई बंदी उत्तर प्रदेश बोर्ड की हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाएँ भी देते हैं।
सीताराम शर्मा ने बताया कि डासना जेल में ऐसी महिला बंदी भी हैं जिनके छोटे बच्चे हैं और उनका पालन-पोषण करने वाला बाहर कोई नहीं है। माँ के प्यार से वंचित न रहें, इसलिए इन मासूम बच्चों के लिए जेल परिसर के अंदर एक क्रैच (Creche) खोला गया है।
क्रैच में बच्चों को विभिन्न नई-नई एक्टिविटी सिखाई जाती हैं और उन्हें पढ़ाई भी कराई जाती है। एक बच्चा तो ऐसा भी है जो डासना जेल से बाहर एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ने जाता है। जेल कर्मचारी बाकायदा उसे अपने साथ स्कूल लेकर जाते हैं और पढ़ाई पूरी होने के बाद वापस लाते हैं। महिला बंदियों के लिए भी पेंटिंग, कढ़ाई, और कंप्यूटर शिक्षा जैसे कई तरह के कौशल विकास कोर्स चलाए जा रहे हैं।
सुपरिंटेंडेंट सीताराम शर्मा का मानना है कि जब ये बंदी सज़ा पूरी करके जेल से बाहर जाते हैं, तो समाज इन्हें दूसरी दृष्टि से देखता है, जिससे उन्हें अपनी जीविका चलाने में काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए, डासना जेल ने विचाराधीन बंदी और कैदियों के लिए शिक्षा, कंप्यूटर, पेंटिंग, डांस, म्यूजिक और अन्य तरह की क्लासेस शुरू की हैं। इसका उद्देश्य यह है कि जब ये बंदी जेल से बाहर निकलें, तो स्वयं का रोजगार स्थापित कर सकें, अपना पालन-पोषण कर सकें और समाज की मुख्यधारा से मजबूती से जुड़ सकें।
