बहन की सगाई से बिगड़े रिश्ते ने बनाया मामला; कोर्ट ने कहा-शादीशुदा महिला का विवाह वादे पर संबंध बनाना ‘कानूनी तर्क से परे’
Punjab News: फरवरी 2020 में दर्ज एफआईआर में आरोपित अधिवक्ता पर धारा 376(2), 180 और 506 आइपीसी के गंभीर आरोप लगाए गए थे, जिन्हें कोर्ट ने पूरी तरह रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि घटनाओं की परिस्थितियाँ स्वयं स्पष्ट करती हैं कि आरोपित और शिकायतकर्ता के बीच रिश्ता दीर्घकालीन और पूरी सहमति पर आधारित था।
पेशागत संबंध से निजी रिश्ते तक की कहानी
बहन की सगाई बनी विवाद का बड़ा कारण
नाटकीय मोड़ तब आया जब शिकायतकर्ता की सगी बहन की सगाई उसी आरोपित अधिवक्ता से तय हो गई। इसके बाद शिकायतकर्ता की ओर से एफआईआर दर्ज कराई गई। अदालत ने कहा कि उपलब्ध दस्तावेजों से स्पष्ट है कि शिकायत “भावनात्मक असंतोष और निजी अस्थिरता” का परिणाम थी, न कि किसी आपराधिक कृत्य का।
अदालत ने कहा-कानूनी और तार्किक रूप से दुष्कर्म का आरोप असंभव
जस्टिस नागपाल ने कहा कि ‘विवाह के झांसे’ पर सहमति से संबंध बनाने का दावा इस मामले में तथ्यगत और तार्किक दोनों स्तरों पर असंभव है। अदालत ने टिप्पणी की कि यदि यह मान भी लिया जाए कि आरोपी ने विवाह का वादा किया था, तब भी एक शादीशुदा महिला का इस वादे पर संबंध बनाना “कानून और तर्क दोनों के विपरीत” है।
अदालत ने पुलिस सामग्री और सभी निर्विवाद दस्तावेजों को परखा
अदालत ने माना कि वह जांच में शामिल पुलिस सामग्री के अतिरिक्त उन दस्तावेजों की भी समीक्षा कर सकती है, जिनकी सत्यता पर कोई विवाद नहीं है। विस्तृत विवेचना के बाद कोर्ट ने दुष्कर्म सहित सभी धाराओं को खारिज करके आरोपित अधिवक्ता को राहत दे दी।
