मां बागमप्रियल मंदिर: भगवान विष्णु को शिव के श्राप से मुक्ति, भक्त यहां कैंसर से राहत पाने आते हैं
देशभर में कई चमत्कारी मंदिर हैं, जहां भक्त अपनी बीमारियों को ठीक करने के लिए भगवान की शरण लेते हैं। भक्तों में आस्था होती है कि भगवान उन्हें हर परिस्थिति से बचा लेंगे। तमिलनाडु में भी भगवान शिव और माँ अंबिका, यानी माँ बागम प्रियल, के साथ विराजमान हैं। मंदिर की मान्यता इतनी है कि भक्त कैंसर का इलाज कराने के लिए दूर-दूर से मंदिर में आते हैं। उनका मानना है कि माँ बागम प्रियल उन्हें हर रोग से बचा लेंगी। तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले के तिरुवदनई के पास समंदर किनारे तिरुवेत्तियुर गांव है, जहाँ माँ बागमप्रियल का मंदिर है।
माँ बागमप्रियल को 'दाई अम्मा' और असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाने वाली माँ कहा जाता है। इसलिए भक्त यहाँ कैंसर के रोग से छुटकारा पाने के लिए आते हैं। माँ बागमप्रियल देवी अंबिका का रूप हैं, जो मंदिर में भगवान शिव के साथ विराजमान हैं। मंदिर को लेकर एक किंवदंती बहुत प्रसिद्ध है, जो राजा महाबली से जुड़ी है। माना जाता है कि राजा महाबली बहुत साहसी और दानशील थे। वे अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे, लेकिन उनके अंदर अहंकार भी पनपने लगा। राजा महाबली ने भगवान शिव के मंदिर में जल रही ज्योत का रक्षण किया था, जिसकी वजह से वे शिव प्रिय भी थे।
लेकिन उनके बढ़ते अहंकार को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और अपने तीसरे पग में उन्हें पाताल लोक भेज दिया। ऐसे में राजा महाबली की मां भगवान शिव के पास प्रार्थना लेकर पहुंची कि उनके साथ अन्याय हुआ। क्रोधित होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु के पैरों को कर्क रोग से पीड़ित होने का श्राप दे दिया। भगवान शिव के दिए श्राप से भगवान नारायण भी छुटकारा नहीं पा सके और दोबारा भगवान शिव की शरण में पहुंचे, जहां भगवान शिव ने बताया कि 18 तीर्थ स्थलों में स्नान करना पड़ेगा।
भगवान विष्णु ने 18 पवित्र नदियों में स्नान किया और आखिर में वे तिरुवेत्तियुर गांव आए और कर्क रोग से उन्हें आजादी मिली। इस पौराणिक कथा की वजह से भक्त आज भी मंदिर में कैंसर रोग से छुटकारा पाने के लिए आते हैं। बताया जाता है कि मंदिर 1000 साल से ज्यादा पुराना है और यहां मुख्य रूप से माँ बागम प्रियल की पूजा होती है। इन्हीं की वजह से भगवान विष्णु अपने रोग से मुक्त हुए थे। मंदिर में भगवान शिव को पझम पुत्रु नाथर के रूप में पूजा जाता है, जबकि उनकी पत्नी के रूप में माँ बागमप्रियल विराजमान हैं। यह भी माना जाता है कि मंदिर की स्थापना ऋषि अगस्त्य ने की थी। उन्होंने पहले मां बागमप्रियल की तपस्या की और फिर मंदिर का निर्माण कराया।
