परमात्मा की प्राप्ति के लिए अन्त:करण की शुद्धि और आत्मबल का महत्व
परमात्मा को पाना है तो अपने मूल अर्थात अपने अन्त:करण की शुद्धि पर ध्यान दें। हृदय में नाना प्रकार के कुत्सित विचारों, राग-द्वेष, काम-क्रोध, घृणा और वैमनस्य के रहते आनन्द मय प्रभु की प्राप्ति की चाह बालू पर भवन बनाने के समान है। परम पावन कल्याण मय प्रभु धोखाधड़ी और नाना प्रकार के प्रपंचों से प्राप्त होने वाला नहीं है। उसके लिए दर-दर भटकने की भी आवश्यकता नहीं है, बस उसके अवतरण स्थान अन्त:करण को उसके अनुरूप बना लो।
वह तुम्हें अपने निकट प्रतीत होने लगेगा, परन्तु हम सारा जीवन सांसारिक उठा-पटक में ही निकाल देते हैं, लेकिन जिस परमात्मा ने हमें इतना सुंदर जीवन प्रदान किया, इतना कुछ दिया उसके बारे में सोचने का स्मरण करने का समय हमारे पास नहीं है। जीवन की संध्या में तो कम से कम संसार से मन को विरक्त कर लो, भगवान के चरणों में लगा लो।
मरना सभी को, परन्तु एक बार मरो, रोज-रोज नहीं मरना। मनुष्य अपनी नासमझी के कारण रोज मरता है, कभी निराशा में, कभी अपमान में, कभी अपनी दुर्बलताओं के कारण और कभी मोह-ममता के कारण। अपनी संकल्प शक्ति को, आत्म बल को, मनोबल को मत मरने दो। परमात्मा के प्रति समर्पण में न्यूनता मत आने दो। जो उससे जुड़ जायेगा, उसी की भटकन समाप्त हो जायेगी।
