कर्म और फल का सिद्धांत: क्यों हर कर्म तुरंत फल नहीं देता
प्रकृति में हर चीज़ का फल मिलने का समय अलग-अलग होता है। कुछ फसलें जल्दी तैयार हो जाती हैं, जैसे सब्ज़ियाँ कुछ ही दिनों में मिल जाती हैं। गेहूँ-मक्का जैसे अन्न कुछ महीनों में पकते हैं। वहीं, फल देने वाले वृक्ष वर्षों बाद फल देते हैं—अमरूद, चीकू, संतरा दो वर्ष में, बेल और आम-जामुन पाँच-छह वर्ष में, जबकि कटहल का वृक्ष लगभग बारह वर्ष बाद फल देता है।
कर्म की प्रकृति ही फल मिलने का समय तय करती है। यदि कोई अपनी आवश्यकता से अधिक, अपथ्य भोजन करता है तो वह पाप तुरंत पेट दर्द या बीमारी के रूप में फल दे देगा। परंतु यही गलत आदत लंबे समय तक जारी रहे तो यह लम्बी बीमारी के रूप में बड़े दुख का कारण बन जाएगी।
इसलिए यदि कोई व्यक्ति बुरे कर्म करके भी सुखी दिखता है या कोई सज्जन व्यक्ति कठिनाइयों से गुजर रहा हो, तो इसका अर्थ यह नहीं कि परमात्मा की न्याय-व्यवस्था गलत है। कर्मों का फल किसी को भी देर-सबेर अवश्य मिलता है।
इस सत्य पर संदेह करने की आवश्यकता नहीं। शुभ कर्म करने वाले को शुभ फल और अशुभ कर्म करने वाले को अशुभ फल—यह प्रकृति का अटल नियम है।
