सौ हाथों से कमाओं !
Thu, 4 Aug 2022

हम दूसरों की सम्पन्नता को देखते हैं, तो ऐसी ही बल्कि उससे भी अधिक सम्पन्नता को प्राप्त करने की इच्छाएं हमारे भीतर जागृत हो जाती हैं। सम्पन्नता प्राप्त करने की इच्छा कोई पाप नहीं है। सभी को प्रगति तथा ऐश्वर्य प्राप्त करने का सद्प्रयास करना भी चाहिए, परन्तु अनावश्यक सम्पन्नता की ललक कभी-कभी सीमाओं को पार करने लगती है। उसकी प्राप्ति के लिए मनुष्य बहुधा सन्मार्ग से भटक जाता है। नैतिक अनैतिक का भेद भी प्राय: समाप्त हो जाता है। मनुष्य अनाचार का मार्ग पकड़ लेता है। धीरे-धीरे अनाचार में व्यापकता आती-जाती है। तृष्णायें जाग उठती हैं। लक्ष्यों में अधिक विस्तार होने लगता है। आवश्यक नहीं कि आप अधिक पुरूषार्थ करने पर भी अपने असीमित लक्ष्यों की प्राप्ति कर लें। फलस्वरूप कुंठाऐ जागृत हो जाती है। कुंठाऐ चिंतन को नकारात्मक रूप प्रदान कर देती हैं। यदि कुंठाओं के कारण विनाश का मार्ग पकड़ लिया जाये, तो सोचो उसका परिणाम क्या होगा। हम अपने ही कारण अपना हरा-भरा गृहस्थ रूपी उपवन उजाड़ देंगे। वेद का आदेश है कि सौ हाथों से कमाओं, परन्तु अनैतिक मार्ग से नहीं, परन्तु हजार हाथों से दान भी करो, ताकि मन में सात्विकता बनी रहे और कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो।