अनमोल वचन
Sun, 15 May 2022

पहले परिवार का मतलब दादा-दादी, चाचा-चाची, भाई-बहन आदि सभी के एक साथ रहने का होता था। एक साथ सबका खाना-पीना होता था। रसोई को रस वर्षा केन्द्र माना जाता था, क्योंकि इसमें परिवार की कई महिला सदस्य मिलकर भोजन बनाती थीं, परन्तु नये दौर में परिवार में संकुचित दृष्टि देखी जा रही है। इन सब कारणों से परिवारों में झगड़े बढ़ते जा रहे हैं, जिसका कुप्रभाव परिवार के छोटे बच्चों पर पड़ता है। बड़े होकर वे भी यही करते हैं, जो बचपन में देखते-सुनते रहते हैं। विकास के युग में व्यक्ति जितना लड़ाई-झगड़ों में समय गंवायेगा, वह आर्थिक दृष्टि से पिछड़ता जायेगा। दरअसल जब तक समय रहता है, तब तक समझ नहीं रहती और जब समझ आती है तो समय हाथ से निकल चुका होता है। ऐसा नहीं है कि लड़ाई-झगड़ों में किसी एक पक्ष की ही हानि होती हो, हानि तो सभी की होती है। अत: आवश्यकता है कि परिवार में माता-पिता अपनी संतानों को संस्कारवान बनाये। बहुत छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे ही छोटी-छोटी बातें एक समय बहुत बड़ी बन जाती हैं। यदि माता-पिता स्वयं संस्कारवान बने होंगे तो बच्चों में भी अच्छे संस्कार आयेंगे, उनका जीवन सुखमय होगा। संवादहीनता से दूरियां बढ़ती है, इसलिए आपसी संवाद बनाये रखना बहुत जरूरी है। परिवार दिवस पर यही संदेश है।