हे प्रभो मैं कुछ मांगने के लिए भिखारी बनकर तेरे द्वार पर नहीं आया। तू जो रात-दिन अपनी कृपा बरसाता है, उनके लिए कृतज्ञता ज्ञापित करने आया हूं, जो कुछ मेरे पास है, वह सब तो आपकी कृपा का ही तो फल है।
आपकी कृपा से मैं भाव-विभोर हो गया हूं, संतुष्ट हो गया हूं। हे प्रभो यह संसार आपकी सर्वश्रेष्ठ रचना है। ये सूरज, यह चांद, यह कल-कल करती नदियां, इठलाते झरने, शांत सागर, घने जंगल, नाना प्रकार के फलों से लदे वृक्ष, जंगलों में विचरते नाना प्रकार के पक्षी और मस्ती में झूमते जीव-जन्तु, आकाश को चूमते पर्वत, उन पर फैली श्वेत बर्फ की चादर सुन्दरता को चार चांद लगाती है।
हम कितने अभागे हैं, जो इस सुन्दरता को निहार ही नहीं पाते, आपके द्वारा प्रदत्त एवं सृजित अनमोल रत्नों से वंचित रह जाते हैं।