Saturday, May 18, 2024

बंगाल की सिविल सेवा में शामिल नहीं हो सकेंगे हिंदी भाषी छात्र, अधिसूचना का हो रहा पुरजोर विरोध

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कोलकाता। पश्चिम बंगाल सरकार ने इसी वर्ष 15 मार्च को एक अधिसूचना जारी की है, जिस पर विवाद गहराने लगा है। पश्चिम बंगाल की सिविल सर्विस (एग्जीक्यूटिव) पदों पर नियुक्ति के लिए जहां एक आवश्यक पेपर में बांग्ला, हिंदी, उर्दू, नेपाली तथा संथाली भाषाओं का विकल्प मौजूद था वहीं अब सिर्फ बांग्ला और नेपाली भाषा का ही विकल्प मौजूद रहेगा। यानी हिंदी उर्दू और संथाली भाषाओं से पढ़ने वाले विद्यार्थी इन परीक्षाओं में भाग नहीं ले सकेंगे।

इस अधिसूचना की विस्तृत जानकारी तथा विरोध प्रकट करने के लिए “वेस्ट बंगाल लिंग्विस्टिक माइनॉरिटी एसोसिएशन” के बैनर तले एक विशाल सभा भारतीय भाषा परिषद के सभागार में आयोजित की गई। इसमें संस्था के संयोजक जितेंद्र तिवारी ने साफ शब्दों में कहा कि बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब तथा अन्य राज्यों के लोग बंगाल में कई पीढ़ियों से रह रहे हैं और यहां के सर्वांगीण विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान भी दे रहे हैं। फिर उन्हें इस अधिसूचना के माध्यम से बंगाल की प्रशासनिक सेवाओं में नौकरी से क्यों वंचित किया जा रहा है? उन्होंने आगे कहा कि हमारा बांग्ला भाषा से भी अत्यधिक प्रेम है और यहां के गैर बांग्ला स्कूलों में भी बांग्ला की पढ़ाई की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे वे भी इस नई अधिसूचना के मुताबिक परीक्षा दे सकें। तब तक ऐसे निर्णय को स्थगित किया जाना चाहिए।

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सभागार में विशाल उपस्थिति के बीच पश्चिम बंगाल सरकार में विरोधी दल के नेता शुभेन्दु अधिकारी ने बुलंद आवाज में कहा, “ऐसा हम होने नहीं देंगे और इसके लिए विधानसभा, लोकसभा, कानूनी कदम तथा जरूरत पड़ी तो सड़कों पर भी उतरेंगे। इस मौके पर साहित्यकार रावेल पुष्प ने कहा कि पहले हिन्दी स्कूलों में भी एक विषय के रूप में बांग्ला की पढ़ाई होती थी, जिसे अब बंद कर दिया गया। उन्होंने एक बांग्ला कहावत का जिक्र करते हुए कहा कि – ढाल नेईं,तोलवार नेईं, निधिराम सरदार यानी बिना अस्त्र-शस्त्र के युद्ध में शामिल नहीं हुआ जा सकता, उसी तरह बिना बांग्ला की पढ़ाई के इस परीक्षा में शामिल ही नहीं हुआ जा सकता।

इस अधिसूचना का पुरजोर विरोध करते हुए विभिन्न वक्ताओं ने संबोधित किया, जिनमें शामिल थे- विधायक द्वय बुधराय टुडू और पवन सिंह, प्रदीप सुमन, ओमप्रकाश सिंह, ललित कुमार, मो.राशिद, शकुन त्रिवेदी तथा अन्य।

इस मौके पर ये भी निर्णय लिया गया कि बंगाल के कई क्षेत्रों में इस मुद्दे पर सभाएं की जाएंगी और विरोध प्रदर्शन किया जायेगा।

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