Friday, September 20, 2024

अनमोल वचन

आयुषायु कृतां जीवायुष्मा जीव मा मृथा……अर्थवेद का ऋषि प्रेरणा देता है ” जीवितो की भांति जीयो मृतो की भांति जीना भी कोई जीना है। जहां उमंग, उत्साह और उत्कर्ष है वही जीवन है। जहां उमंग नहीं, उत्साह नहीं, उत्कर्ष की चाह नहीं वह जीवन की मृतावस्था है।

उमंग और उत्साह से ही जीवन में उत्कर्ष का सम्पादन होता है। उमंग और उत्साह से शून्य जीवन उत्कर्ष विहीन और मलिन जीवन होता है। महत्वाकांक्षा उत्कर्ष की जननी है। कोई भी महत्वाकांक्षा उमंग और उत्साह के बिना पल्लवित नहीं हो सकती। कोई महत्वाकांक्षा ऐसी नहीं, जो पुरूषार्थ से सिद्ध न हो सके।

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पुरूषार्थ से प्रत्येक असम्भव लगने वाला कार्य सम्भव हो जाता है। असम्भव शब्द केवल आलसी और मूर्ख लोगों के शब्दकोष के लिए है। महत्वाकांक्षा उत्कर्ष हेतु प्रेरणा का कार्य करती है। उमंग, उत्साह और पुरूषार्थ के द्वारा प्रत्येक महत्वाकांक्षा पूर्णता को प्राप्त हो सकती है। इनके द्वारा उत्कर्ष स्थल तक पहुंचा जा सकता है, परन्तु एक सतर्कता अवश्य बरते कि महत्वाकांक्षा को अतिमहत्वाकांक्षा में परिवर्तित न होने दे, क्योंकि अतिमहत्वाकांक्षा सन्मार्ग से भटका देती है।

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