Tuesday, November 5, 2024

अनमोल वचन

शरीर रूपी रथ में पांच ज्ञानेन्द्रिय तथा पांच कर्मेन्द्रिय के रूप में दस घोड़े लगे हैं। इनकी लगाम होती है मन के हाथ में। रथ का सारथी मन है और स्वामी आत्मा है। होना तो यह चाहिए कि रथ स्वामी अर्थात आत्मा के आदेश से चले, परन्तु रथ को मन अपनी इच्छानुसार चला रहा है।

विडम्बना यह है कि सारथी मन जिसे नौकर की भूमिका में होना चाहिए था वह स्वामी बनकर बैठा है और स्वामी (आत्मा) नौकर बन गया है। यदि शरीर मेरा (आत्मा का) है तो आदेश भी मेरा ही चलना चाहिए। जब तक नौकर (मन) यूं ही चलाता रहेगा हम यूं ही भटकते रहेंगे। इसलिए मन को हावी न होने दें, उसे पराजित करो।

आपने मन को एक बार पराजित कर दिया तो आप मन से सौ गुणा शक्तिशाली बन जाते हैं, परन्तु हम मन से एक बार हार जाते हैं तो मन हमसे एक हजार गुणा शक्तिशाली बन जाता है। हम मन से सदैव जीतने की कोशिश करें, परन्तु जीतना आसान नहीं है। एक दम मन को हरा भी नहीं पायेंगे।

उसके लिए छोटे-छोटे प्रयोग करने होंगे, क्योंकि मन को हार स्वीकार नहीं। वह कभी हारा भी नहीं। छोटे-छोटे प्रयोगों के सहयोग से मन को धीर-धीरे हराकर इसके चक्रव्यूह से बाहर निकला जा सकता है।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,466FollowersFollow
131,499SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय