खेद है हम अपना सारा जीवन धन कमाने की दौड़धूप में ही गंवा देते हैं, परमात्मा के दिये हुए इस अनमोल मानव शरीर को हम कौड़ियों के भाव प्रयोग करते हैं। इसकी सार्थकता की ओर हमारा ध्यान कदाचित ही जाता है। जीवन पर्यन्त परिधि का चक्कर लगाते रहते हैं, केन्द्र की ओर जाने का प्रयास ही नहीं करते।
आत्मस्थ होने के लिए हमें महर्षि पंतजलि के अष्टांग योग का पालन करना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान को माध्यम बनाकर ही हम मोक्ष के अधिकारी हो सकते हैं।
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को सदैव सजग करते हुए कहते हैं कि हे अर्जुन व्यक्ति योगियों के साथ योगी और भोगियों के साथ भोगी बन जाता है। भोग भोगने से तृप्ति कदापि नहीं होती, बल्कि कामनाएं बलवती होती जाती हैं।
समस्त विषय वासनाओं का विनाश करने के लिए यौगिक क्रियाओं से बढ़कर कुछ भी श्रेष्ठ नहीं। मानव जीवन के समग्र विकास के लिए योग संजीवनी है। यदि हम सचेत नहीं हुए तो विषय वासनाओं के कीचड़ में फंसकर बार-बार विभिन्न योनियों में भटकते रहेंंगे। संकल्प लें कि हमें आज से ही योग को माध्यम बनाकर जीवन को सार्थक और सफल बनाना है।