जीवन में अपेक्षित सफलता प्राप्त करने के लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित करना आवश्यक है। लक्ष्य बनाकर ईश्वर को साक्षी कर उनकी पूर्ति के लिए दृढ प्रतिज्ञा कर ले कि पुरूषार्थ और सद्प्रयासों के साथ उन्हें पूरा किया जायेगा और किसी भी दशा में उसके विपरीत आचरण नहीं किया जायेगा। मनुष्य जब कोई लक्ष्य बना लेता है तो उसके द्वारा कोई ऐसा कार्य नहीं हो पाता, जो लक्ष्य के विरूद्ध हो। इसीलिए लक्ष्य का निर्धारण आवश्यक है। लक्ष्य के दो भेद होते हैं स्थिर तथा अस्थिर अर्थात दीर्घकालिक और तात्कालिक। स्थिर लक्ष्य जीवन भर का एक ही होता है सत्य को ग्रहण करना और असत्य का त्याग करना, उपनिषद में इस सत्य को ही धर्म कहा गया है। दूसरा अस्थिर लक्ष्य जो तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। तात्कालिक लक्ष्य हर आयु में अलग-अलग होता है। जैसे एक विद्यार्थी का तात्कालिक लक्ष्य है मन लगाकर विद्याध्ययन करना। विद्यालय के पश्चात नौकरी अथवा कोई व्यवसाय करना, परन्तु एक गृहस्थी का तात्कालिक लक्ष्य होता है धन कमाना। लक्ष्य समय-समय पर बदलता रहता है। जैसे बच्चे जवान हो गये उस समय गृहस्थी का लक्ष्य होगा, उन्हें व्यवसाय में स्थापित करना, उनके विवाह का उत्तरदायित्व पूरा करना। जो लक्ष्य जिस समयावधि का हो व्यक्ति का कर्तव्य है उसकी पूर्ति हेतु दृढ संकल्प के साथ पुरूषार्थ करे और कोई ऐसा विपरीत कार्य न करे, जिससे लक्ष्य पूर्ति बाधित हो।