मां-बाप किसी के भी हो सभी अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने योग्य बनाते हैं और आशा करते हैं कि वे उनके बुढ़ापे में उनका सहारा बने और उनके सुख-दुख में उनके साथ रहे, परन्तु बच्चे अपनी शादी के बाद माता-पिता से मुंह मोड़ लेते हैं। अपनी अलग दुनिया बसा लेते हैं। ऐसा अधिकांश परिवारों में आज कल हो रहा है। अच्छा यह लगता है कि जिस-जिस परिवार में बुजुर्गों का निवास हो परिवार के अन्य सदस्य उनका सम्मान करें। उन्हें अकेलेपन का अहसास न होने दे, परन्तु दुख है कि आज के बदलते समय में उन्हें सम्मान नहीं अपमान सहना पड़ता है। युवा पीढ़ी उनका चाहती तो सब कुछ है, परन्तु उनके लिए उन्हें अपना कर्तव्य याद नहीं रहता। आदर्श परिवार तभी बनेगा, परिवार सुख-शान्ति से तभी रह सकेगा, परिवार का भविष्य उज्जवल तभी हो सकेगा, जब परिवार के बुजुर्गों का सम्मान किया जायेगा। बुजुर्गों के मुख से निकले आशीष वचन उनके सुख-सौभाग्य में वृद्धि करेंगे। एक सटीक कहावत है ”जो बुजुर्गों का करता है आदर-सत्कार उसके जीवन में आती है सदा बहार, जो बुजुर्गों का नहीं करता आदर-सत्कार उनकी पूजा-पाठ सब कुछ है बेकार।”