वचन को यदि कर्म में परिणित न किया जाये तो वचन मात्र वाक विलास ही बनकर रह जायेगा। उसे कर्म में उतारना अनिवार्य है। मुझे अपने व्यापार का, उद्योग का विस्तार करना है। अपनी भूमि में फलदार वृक्षों का बाग लगाना है, कृषि को आधुनिक तथा उन्नत बनाना है, मुझे इस वर्ष परीक्षा में प्रथम श्रेणी के अंकों से उत्तीर्ण होना है अथवा जो व्यक्ति जिस क्षेत्र से सम्बन्धित है, उसके विषय में कुछ उत्साही घोषणाएं करता है, तो उन वचनों को कहने का तब तक कोई लाभ नहीं, जब तक उनकी पूर्ति हेतु पुरूषार्थ न किया जाये।
कथनी और करनी में समरूपता होनी चाहिए। कुछ समझदार लोग किसी प्रकार की कोई घोषणा तो नहीं करते, किन्तु जो निश्चय उन्होंने किया है, उसकी पूर्ति के लिए जी तोड़ परिश्रम करते हैं, उनकी सफलता के बाद उनकी उपलब्धियों का सभी को ज्ञान हो जाता है, किन्तु जो लोग वाक विलास तो बहुत करते हैं, ऊंची घोषणाएं भी करते हैं, किन्तु गम्भीरता के साथ उसके लिए प्रयास नहीं करते वे समाज में उपहास के पात्र बन जाते हैं, इसलिए जो कहो उसे कार्य रूप में परिणीति के लिए प्रयास अवश्य करो। सफलता-असफलता दोनों ही प्रारब्ध के अनुसार प्राप्त होगी और उसके निर्माता कोई और नहीं केवल आप हैं।