संसार का नियम है जो आयेगा सो जायेगा अर्थात जो संसार में जन्म लिया, संसार में आया, उसे एक न एक दिन जाना तो अवश्य है। हां कुछ आयु पूरी कर जाते हैं और कुछ अल्पायु में ही काल का ग्रास बन जाते हैं। मृत्यु किसी की आयु का विचार नहीं करती। काल किसी का मित्र है न शत्रु। मृत्यु के लिए न कोई बूढा है और न कोई बालक है। जो अल्पायु में चले जाते हैं उनके जाने का शोक स्वाभाविक रूप से अधिक होता है, किन्तु उस मृत्यु को हमें इस रूप में स्वीकार करना चाहिए कि जो वस्तु परमात्मा ने हमें दी थी उसने उसे हमसे वापिस ले लिया है। जब तक के लिए दी थी तब तक वह हमारे पास थी। अब व हमारी नहीं रही। उसी की थी उसे न वापिस ले ली। जो चला गया वह चला गया, वह लौटकर आने वाला नहीं है फिर उसके लिए रंज करना व्यर्थ है ‘गते शोको न कत्र्तव्यों अर्थात गये हुए का शोक करना स्वास्थ्य और समय दोनों की बर्बादी है। परमात्मा की यही व्यवस्था है उसके आगे सभी को नतमस्तक होना पड़ता है।