आपको बुरा लगता है ना जब कोई हितैषी आपको आपकी कमी बताता है, उन्हें आप में जो अवगुण दिखाई देता है उसको बताता है, लेकिन बुरा मानने से क्या वे अवगुण क्या वे कमियां आपमें समाप्त हो जायेंगी? चमड़ी के रोग को कपड़े से ढक देने से क्या वह रोग दूर हो जायेगा? उससे मुक्त होने के लिए उसका उपचार करना होगा, साथ ही उस रोग के मूल कारण को खोजकर उसका निराकरण करना होगा।
हमारे दोषों का मूल कारण है आसक्ति। वह आसक्ति ही तो है, जो हमसे कुकर्म कराती है, लोभ है जो हमें निरंकुश कर देता है।
जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को प्रगति के शिखर पर पहुंचने की कामना होती है, होनी भी चाहिए, परन्तु उसके लिए अनैतिक मार्ग न अपनाया जाये। नैतिक मूल्यों को ताक पर रखकर आगे बढ़ने की कामना मात्र करना ही पाप है। उसके लिए दूसरे से कपट किया जायेगा, दूसरों का हक छीना जायेगा, बेईमानी की जायेगी तो महापाप के भागी बन जाओगे।
हे प्राणी अपनी आत्मा को कुकर्मों के बोझ से मत दबाओ, हमारे पास बेशक सुख साधना की प्रचुरता न हो, अभाव की परिस्थितियां हो.. फिर क्या कभी सोचा है कि प्रभु ने हमें यह सुन्दर, स्वस्थ, मानव शरीर दिया है। उसके इस वरदान का अपने कुकर्मों के द्वारा अपमान न करें। नैतिकता और ईमानदारी का मार्ग कदापि न छोड़ें।