संसार में कितने शक्तिशाली चक्रवर्ती सम्राट, अथाह सम्पत्ति के स्वामी, बड़े-बड़े धनवान, विद्वान, दानी, कुलवान हुए होंगे, किन्तु कोई उनके बारे में जानता तक नहीं। कोई उनका नाम भी नहीं लेता, किन्तु इसके इसके विपरीत शताब्दियों, सहस्रों वर्षों के बाद भी आज दुनिया में जिन्हें आदर प्राप्त हो रहा है, जो आज भी पूजनीय है, श्रद्धा से जिनका स्मरण किया जाता है, उसका कारण है उन्होंने समाज को कुछ दिया तो निर्लिप्त भाव से। उन्होंने मानवता के हित में जो कार्य किये उनका प्रचार नहीं किया। हां अपने चिंतन का प्रसार अवश्य किया ताकि समाज उनसे लाभान्वित हो सके। जब उनका चिंतन उनके कार्य सामाजिक हितों की कसौटी पर खरे उतरे तो समाज ने स्वयं आगे आकर उनके लिए श्रद्धा और भावना के द्वारा खोल दिये। ठीक है कि हर मनुष्य संत नहीं बन सकता, किन्तु संतवृति तो अपना सकता है। जब वह इस राह पर चल पड़ेगा तो उसे किसी प्रचार, लोक प्रशंसा का मोह ही नहीं रहेगा। उसका समाज में स्वयं उच्च स्थान बन जायेगा। इसके लिए उसे नाम पाने की किसी प्रकार व्यग्रता दिखाने से बचना होगा।