सुखों की प्राप्ति हेतु हम येन-केन प्रकारेण धन कमाने में ही लगे रहते हैं। धर्म के विषय में चिंतन करने का समय हमारे पास है ही नहीं। धर्म से धन की प्राप्ति होती है, धर्म से ही सुख की प्राप्ति होगी। धर्म से ही सब कुछ प्राप्त हो सकता है। संसार में धर्म ही सार है। इसलिए हमारा आचरण भी धर्मानुसार ही होना चाहिए। धर्मानुसार जो प्राप्त हो उसी में सुख-संतोष का अनुभव करें। जीवन निर्वाह हेतु किये गये कर्मों के साथ-साथ उस परमात्मा का धन्यवाद भी करते रहें। परमात्मा कितना दयालु है, कितना कृपालु है उसका चिंतन भी अवश्य करें, क्योंकि उसकी बनाई पृथ्वी पर दुष्ट, सज्जन, आस्तिक, नास्तिक, पापी, पुण्यात्मा सबको स्थान मिला है। उसका बनाया अन्न सबकी भूख मिटाता है, जल सबकी प्यास बुझाता है। वायु उसको प्राण शक्ति देती है। क्या इनके बदले उसने कोई मूल्य मांगा है। मांगे भी तो क्या हममें उसे देने का सामर्थ्य है। जिसकी बनाई सृष्टि इतनी उदार है वह कितना उदार होगा। उसकी उदारता का धन्यवाद इस प्रकार करे कि हम भी किसी के काम आते रहे, किसी की सहायता करते रहे।