मनीषियों का वचन है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। स्वस्थ और निरोग वे ही हैं जिनके स्वस्थ और शुद्ध शरीर में शुद्ध मन का वास होता है। मनुष्य केवल शरीर ही नहीं है। शरीर तो उसके रहने भर का स्थान है। शरीर मन और इन्द्रियों का ऐसा घना सम्बन्ध है कि इनमें एक के बिगडने पर बाकि के बिगडने में जरा भी देर नहीं लगेगी। इसीलिए चरित्रहीन लोग निरोग और स्वस्थ की गिनती में नहीं आते।
शरीर और आत्मा का ऐसा गहरा सम्बन्ध है कि जिसका शरीर निरोग रहेगा, उसकी आत्मा और मन अवश्य ही शुद्ध और पवित्र होंगे। जिसका मन शुद्ध और पवित्र होगा उसके शरीर में रोग होते ही नहीं। यदि कोई रोग हो भी जाये तो मन की शक्ति से उसे ठीक भी कर लेगा। जो शरीर की आवश्यकता के अनुसार खायेगा और भोजन के अनुसार खूब परिश्रम करेगा वह रोगी होगा ही नहीं।
कुछ लोग खूब खाते-पीते हैं, हट्टे-कट्टे दिखाई देते हैं, किन्तु उन्हें खून खराबा बिना चैन नहीं पड़ता। कुछ व्यक्तियों को बिना लडे-झगडे शान्ति नहीं मिलती। वे झगडा करने का बहाना ढूंढते रहते हैं। वास्तव में ऐसे लोग मनोरोगी होते हैं। उनका यह योग भविष्य में पागलपन में बदल जाता है। ऐसे व्यक्ति समाज के भी हेय दृष्टि से देखे जाते हैं।