रावण को दसानन कहा जाता है, लोक व्यवहार में हम कहते हैं कि रावण के दस सिर थे। दस सिर होने का अर्थ सांकेतिक है। यह मात्र एक अलंकार है। किसी व्यक्ति के दस सिर नहीं हो सकते यह ज्ञान सबको है। वास्तव में रावण विद्वान था, दसों दिशाओं का ज्ञाता था। कालान्तर में सत्ता और ऐश्वर्य के नशे ने उसे अहंकारी बना दिया, वह अति महत्वाकांक्षी भी हो गया। संकेत यह है कि रावण की कामनाएं दसों दिशाओं में फैलने लगी। इतनी कि यहां का भी मेरा हो जाये, वहां का भी मेरा हो जाये। यह राज्य भी मेरा हो जाये, उस राज्य का स्वामी भी मैं हो जाऊं। उसकी ये महत्वाकांक्षाएं काफी हद तक पूरी भी हुई। यहां तक कि पातालपुरी (वर्तमान में अमेरिका) में भी रावण का ही शासन था। हमने इस सच्चाई को तो समझा नहीं और लगा दिये रावण के दस सिर। अत्याधिक धन ऐश्वर्य तथा अपरिमित सत्ता व्यक्ति को मदांध बना देती है और रावण जैसा महाविद्वान भी उससे अछूता नहीं रहा। इसी कारण वह बुराई का प्रतीक बन गया।