महापुरूष किसी की उंगली पकड़कर मोक्ष में नहीं ले जाते। उंगली पकड़कर मोक्ष में ले जाने का कोई उपाय भी नहीं है, क्योंकि मोक्ष अत्यंत व्यक्तिगत चीज है। उसे स्वयं प्राप्त करना होता है, स्वयं चखना होता है। जाग जाना ही महत्वपूर्ण है। जो जाग जाता है वह अपना पथ स्वयं प्रशस्त कर लेता है। वह अपनी मंजिल स्वयं साध लेता है, महावीर को किसने मार्ग दिखाया था, बुद्ध को किसने उपदेश दिया था, दयानन्द को किसने प्रेरणा दी, नानक को भी तो अपने भीतर से ज्ञान उपजा था। हम तो धारणाओं और मान्यताओं में ही बंधकर भटकते रहे हैं। हमने तो माना है कि हम शरीर है। यह मान्यता वर्तमान जीवन से ही आरम्भ नहीं हुई, जन्म जन्मान्तर से ही यही मानते आये हैं। इसी मान्यता का यह परिणाम है कि हम पुन: पुन: जन्म लेते हैं और पुन: पुन: मरते हैं। बच्चे बनते हैं, युवा होते हैं, वृद्ध होते हैं। हमारे जितने भी दुख हैं इसी मान्यता के प्रतिफल है कि हम देह है, परन्तु सत्य यह है कि मैं देह नहीं हूं, मैं एक विशुद्ध सच्चिदानन्द रूप आत्मा हूं। जब इस सत्य का बोध होता है तो हमारे जितने भी दुख हैं सब विलीन हो जाते हैं। हम स्वयं को उपलब्ध हो जाते हैं। स्वयं में स्थिर हो जाते हैं और वहीं से मोक्ष का मार्ग खुल जाता है।