संसार के अनेक लोगों का कहना है कि उनका चाहते हुए भी भगवान में ध्यान नहीं लगता। उन्हें आत्मवलोकन कर यह निश्चित करना चाहिए कि उनमें ये दोष विद्यमान है या नहीं, क्योंकि इन दोषों के रहते ध्यान लगाना असम्भव है…
प्रथम, अधिक आहार या दोष पूर्ण आहार ध्यान भक्ति में बाधक है, क्योंकि उनसे मनुष्य की प्रवृति दोषपूर्ण हो जाती है।
दूसरे, जिन व्यक्तियों की दिनचर्या अव्यवस्थित होती है अर्थात जो अव्यवस्थित श्रम करते हैं अथवा अपनी शारीरिक क्षमता से बहुत अधिक श्रम करते हैं उनका सोने, जागने, खाने, नहाने का कोई समय निश्चित नहीं होता, उनका मन विक्षिप्त रहता है, उसका ध्यान नहीं लग सकता।
वाचाल अर्थात अधिक बोलने वाले तथा तीव्र गति से बोलने वाले का मन चंचल होता है। वह अन्तर्मुखी हो ही नहीं सकता, इसलिए उसका ध्यान नहीं लगता।
ऐसे लोग जिनकी संगति चरित्रहीन लोगों में होती है उनमें भोगेच्छा प्रबल होती है। भोगों का ही चिंतन रहते परमात्मा चिंतन असम्भव है, जो व्यक्ति अधिक धन लोलुप होते हैं, उन्हें प्रत्येक क्षण धन लोलुपता रहती है। भगवान का ध्यान करने का समय उनके पास नहीं होता।
ऐसे लोगों का भी ध्यान परमात्मा में नहीं लग सकता, जो निष्क्रिय है अथवा कर्महीन हैं। उनका चिंतन हमेशा नकारात्मक होता है, उनका ध्यान और भक्ति से क्या सम्बन्ध। वे परमात्मा के बारे में कभी सोच ही नहीं सकते।
यदि आप मन से उस प्रभु का ध्यान करना चाहते हैं, तो पहले इन दोषों को दूर कीजिए फिर सरलता से प्रभु में ध्यान लग जायेगा।