Monday, December 23, 2024

101 महिला अधिवक्ताओं ने सुप्रीमकोर्ट से लगाई गुहार, नफरती भाषण, वीडियो बंद करने का निर्देश देने की मांग

नयी दिल्ली- दिल्ली उच्च न्यायालय महिला लॉयर्स फोरम ने नूंह हिंसा के बाद भय का माहौल पैदा कर रहे नफरती भाषण और वीडियो पर प्रतिबंध लगाने के लिए हरियाणा सरकार को निर्देश देने की उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ से गुहार लगाई है।

महिला अधिवक्ताओं ने एक पत्र याचिका के माध्यम से हरियाणा सरकार को नफरत फैलाने वाले वीडियो को चिन्हित कर संबंधित लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश देने की गुहार लगाई है।

याचिका पर 101 महिला अधिवक्ताओं के हस्ताक्षर हैं, जिसमें उन वीडियो को चिन्हित करने और प्रतिबंध लगाने की गुहार लगाई गई है। ऐसे वीडियो पर प्रतिबंध लगाने की गुहार लगाई गई है जो कथित तौर पर किसी भी समुदाय, पूजा स्थलों को नुकसान पहुंचाने या आर्थिक बहिष्कार का आग्रह करने की धमकी देते हैं।

याचिका में कहा गया है कि उन्होंने महिला, मां और न्यायालय के कामकाज से जुड़े होने के नाते हम सांप्रदायिक सद्भाव, कानून के शासन और जिम्मेदारी की भावना के प्रति एक मजबूत प्रतिबद्धता महसूस करते हैं।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को प्रेषित पत्र में कहा गया है कि हरियाणा के नूंह क्षेत्र में हुई हालिया घटनाओं के मद्देनजर सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाले भाषण और लक्षित हिंसा भड़काने वाले वीडियो सामने आने से गंभीर चिंता पैदा हो गई है, जो समाज में शांति और सद्भाव को बाधित कर रहे हैं।

महिला वकीलों ने अपनी पत्र याचिका में कहा, “हम, दिल्ली और गुड़गांव में रहने वाले कानूनी समुदाय और दिल्ली उच्च न्यायालय महिला वकील फोरम के सदस्यों के रूप में इस पत्र याचिका के माध्यम से आपके संज्ञान में इस तथ्य को लाने के लिए आपके आधिपत्य से संपर्क किया है कि नफरत भरे भाषण वाले वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे हैं।”

याचिका में उच्चतम न्यायालय की ओर से बार-बार जारी किए गए निर्देशों का उल्लंघन करते हुए नफरत फैलाने वाले भाषणों को रोकने के लिए निर्देश देने की गुहार लगाई गई है।

याचिका में ‘शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत सरकार’ मामले में 11 अगस्त 2023 को शीर्ष अदालत की टिप्पणियों का हवाला दिया गया है कि समुदायों के बीच सद्भाव और सौहार्द होना चाहिए और नूंह में हाल की सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुस्लिम समुदाय का बहिष्कार करने का आह्वान ‘अस्वीकार्य’ था।

याचिका में ‘तहसीन एस पूनावाला बनाम भारत सरकार और अन्य (2018)’ मामले का भी हवाला दिया गया है, जिसमें शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोड़ दिया है कि भीड़ की बढ़ती हिंसा को सरकारों को सख्त कार्रवाई करके रोकना होगा। असहिष्णुता और भीड़ हिंसा की घटनाओं के माध्यम से व्यक्त बढ़ते ध्रुवीकरण को देश में जीवन का सामान्य तरीका या कानून और व्यवस्था की सामान्य स्थिति बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

याचिका में अक्टूबर 2022 और अप्रैल 2023 में जारी किए गए शीर्ष अदालत के निर्देशों का भी जिक्र किया गया है, जिसमें नफरत फैलाने वाले भाषण के अपराधों से जुड़े मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए तत्काल स्वत: कार्रवाई को अनिवार्य किया गया था। आदेश में यह स्पष्ट कर दिया गया कि ऐसी कार्रवाई भाषण देने वाले या ऐसे कृत्य करने वाले व्यक्ति के धर्म की परवाह किए बिना की जाएगी, ताकि संविधान के प्रस्तावना द्वारा परिकल्पित भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को संरक्षित रखा जा सके।

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