आप किसी व्यक्ति को तो कह सकते हैं कि आज नहीं कल आना, परन्तु मृत्यु को ऐसा नहीं कह सकते कि आज नहीं फिर आना, इसलिए जो श्रेष्ठ है, सत्य की कसौटी पर खरा है वह आज ही करो, इसी क्षण करो।
क्षण मात्र का विलम्ब भी विलम्ब सिद्ध हो सकता है। कौन जाने बाहर गया श्वास लौटे कि न लौटे। नहीं लौटे तो कोई उपाय नहीं कि उसे लौटाया जा सके।
जब तक श्वास चल रहा है, तब तक जीवन है, उस जीवन का सदुपयोग करो, श्रेष्ठतम के लिए उपयोग करो, धर्म के लिए उपयोग करो, क्योंकि धर्म ही श्रेष्ठतम है।
केवल अपनी (आत्मा की) मानो, मन की न मानो, क्योंकि यह जो मन है बहुत शक्तिशाली है। अपनी मनवाने पर उतारू रहता है। यह इतना शक्तिशाली है कि हमें एक क्षण में अतल रसातल में गिरा देता है और एक ही क्षण सिंहासनासीन करा देता है। एक ही क्षण में नरक में गिरा सकता है और क्षण भर में ही मोक्ष के स्वर्ण सिंहासन पर आसीन भी करा सकता है।
पाप कार्यों के ध्यान में तल्लीन मन हमें पतित करता है, किन्तु ईश्वर और धर्म आध्यात्म में तल्लीन मन हमारा उत्थान कराता है, कल्याण कराता है, मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है। इसलिए निर्देश सदैव आत्मा से लें। उसी के निर्देशों का पालन करें।