मेरठ। एलआईयू के सिपाही को 600 रुपये की रिश्वतखोरी के मामले में अदालत ने साक्ष्यों के अभाव में 18 साल बाद बरी कर दिया है। यह सिपाही तीन महीने जेल में रहा। इस मुकदमे के चलते उसे निलंबित कर दिया गया और प्रमोशन भी नहीं दिया दिया। अब फैसला आया तो सिपाही दो साल पहले सेवानिवृत्त हो चुका है।
अब सिपाही के अधिवक्ता मानसिक प्रताड़ना और सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान की भरपाई के लिए हाईकोर्ट की शरण लेने की बात कह रहे हैं।
मामला 20 मार्च 2006 का है। मेरठ के देहलीगेट थाना क्षेत्र के रहने वाले आतिफ नवाज खां ने सतर्कता अधिष्ठान मेरठ के तत्कालीन एसपी से शिकायत की थी कि उनके पासपोर्ट सत्यापन की रिपोर्ट लगाने के एवज में सिपाही जिले सिंह ने 1200 रुपये की मांग की। 400 रुपये उन्होंने दे दिए। सिपाही ने 600 रुपये और मांगे। शिकायत पर एसपी ने टीम गठित की। टीम के मुताबिक सिपाही रिश्वत लेते पकड़ा गया। उससे 600 रुपये भी बरामद किए गए। सतर्कता अधिष्ठान ने सिपाही को जेल भेज दिया।
वहीं, विभाग ने उसे निलंबित कर दिया। तीन महीने बाद हाईकोर्ट से जमानत हुई। मामला न्यायालय में चलता रहा। इस दौरान अभियोजन पक्ष ने पांच गवाह पेश किए। सोमवार को अपर जिला जज (विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण) प्रमोद कुमार गंगवार ने फैसला सुनाया। साक्ष्य के अभाव में सिपाही जिले सिंह को बरी कर दिया गया।