Monday, November 25, 2024

वीर बाल दिवस का महत्व और संदेश

9 जनवरी 2022 को गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 26 दिसम्बर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी। उस दिन को गुरु गोबिंद सिंह जी के चार साहिबजादे बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह, बाबा जोरावर सिंह तथा बाबा फतेह सिंह जी के सम्मान दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी।

इस दिन गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह जी को मुगल गवर्नर नवाब वजीर खान ने जिन्दा दीवार में चुनवा दिया था। उस समय बाबा जोरावर सिंह जी की उम्र केवल 9 वर्ष तथा बाबा फतेह सिंह जी की उम्र केवल 7 वर्ष थी। विश्व के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है और न ही भविष्य में कभी होगा, जब सिर्फ 9 वर्ष तथा 7 वर्ष के दो बालकों ने अपने धर्म पर अडिग रहते हुए अपने जीवन का बलिदान कर दिया हो।

पिछले वर्ष इस उपलक्ष में दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में पहली बार 26 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी जी की उपस्थिति में राष्ट्रीय कार्यक्रम किया गया था और इस बार 26 दिसम्बर को दिल्ली के भारत मंडपम, प्रगति मैदान में आयोजित किया जा रहा है। इसके अलावा देश भर में कई जगहों पर सरकारी और गैर सरकारी कार्यक्रम आयोजित किये जाने वाले हैं।

गुरु गोबिन्द सिंह जी ऐसे इतिहास पुरुष हैं, जिसका दूसरा उदाहरण कहीं नहीं मिलता। गुरु जी ने मात्र 9 वर्ष की आयु में अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी को धर्म की रक्षा हेतु अपना जीवन बलिदान करने के लिए प्रेरित किया। गुरु जी ने अपने चारों साहिबजादों को भी धर्म की रक्षा के लिये कुर्बान कर दिया और बाद में अपना जीवन भी धर्म की रक्षा के लिये कुर्बान कर दिया।

1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने धर्म की रक्षा तथा मुगलों के अत्याचारों के खिलाफ खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने धर्मनिष्ठ सिखों का एक विशेष योद्धा समूह बनाया था। जिसका एकमात्र उद्देश्य आम जनता को धार्मिक उत्पीड़न से बचाना था लेकिन मुगल इसे अपने लिए खतरा समझते थे।

1704 में गुरु जी और उनके सिख सैनिकों को आनंदपुर साहिब में राजा भीम चंद, राजा हरिचंद और मुगल सेना ने घेर लिया था। जब खाद्य आपूर्ति खत्म हो गई तो गुरु जी ने अपने लोगों की जीवन रक्षा के लिये किला छोड़ने की सहमति दे दी। मुगल गवर्नरों ने गुरु जी के साथ समझौता किया था और कसम खाई थी कि अगर गुरु जी आनंदपुर साहिब छोड़ देंगे तो युद्ध नहीं किया जायेगा, न ही उनका पीछा किया जायेगा, उन्हें सुरक्षित जाने दिया जायेगा। लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके सिखों पर सरसा नदी के पास हमला कर दिया गया। जिसके कारण गुरु जी का परिवार उनसे बिछड़ गया।

चमकौर साहिब में मुगलों की सेना से लड़ते हुए बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह जी ने अपनी शहादत दे दी। बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह जी को धोखे से पकड़कर मुगल गवर्नर नवाब वजीर खान के सामने प्रस्तुत किया गया। दोनों साहिबजादों को अपने जीवन के बदले अपना धर्म बदलकर इस्लाम अपनाने को कहा गया लेकिन दोनों साहिबजादों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने की बजाय मौत को गले लगाना बेहतर समझा। धार्मिक उत्पीड़न के खिलाफ साहिबजादों द्वारा दिखाया गया साहस और शौर्य अद्वितीय है।  ये वीर बाल दिवस वो मौका है, जब पूरी दुनिया को उनके सर्वोच्च बलिदान को जानने का अवसर मिलना चाहिए।

ये दिन सिर्फ दो साहिबजादों के बलिदान को याद करने का दिन ही नहीं है बल्कि यह भी समझने का दिन है कि सिख गुरुओं ने किस तरह से देश के लिये अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। यह जानने का दिन है कि मात्र 9 वर्ष तथा 7 वर्ष की आयु में  बिना डरे, घबराये, झुके और  हंसते हंसते हुए मौत को स्वीकार किया गया। कल्पना करिये उस दृश्य की जब दो छोटे साहिबजादों को दरिंदगी पूर्ण तरीके से दीवार में जिंदा चुनवाते समय खुशी मनाते लोग कैसे होंगे?  मात्र 9 वर्ष और 7 वर्ष के साहिबजादों को दीवार में जिंदा दफन करते हुए एक-एक ईंट रखी जा रही होगी और उनके चेहरे पर फैले तेज को देखकर उन लोगों में कितना भय पैदा हो रहा होगा। कल्पना करिये कि उनके बलिदान ने कितना डरा दिया होगा उन अत्याचारी शासकों को जो देश पर कब्जा करके बैठे हुए थे। क्या कभी आपने ऐसे वीर बालकों के बारे में इतिहास में कहीं और पढ़ा या सुना है? विश्व इतिहास में ये ऐसी अनोखी और दुर्लभ घटना है, जिसका विवरण कहीं और नहीं मिलता। इतनी कम उम्र में अपने धर्म को समझना और उसके लिए सर्वोच्च बलिदान दे देना, कोई साधारण घटना नहीं थी।

ये घटना ही बताती है कि क्यों हम एक हजार सालों की दासता के बाद भी अपने धर्म को बचाने में कामयाब रहे । इन वीर साहिबजादों की शहादत ने न जाने कितने वीर पैदा किये होंगे, जिन्होंने धर्म की रक्षा करते हुए हंसते-हंसते अपने जीवन को धर्म पर न्यौछावर किया होगा।

भारत के इतिहास में गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके साहिबजादों की शहादत की कहानी बेहद प्रेरणादायी है, जिसे देश के हर बच्चे को जानना और समझना चाहिए।

वीर बाल दिवस हमें ये मौका देता है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को बता सकें कि हमारा इतिहास कितना गौरवमयी रहा है। सिख इतिहास की ये गौरवपूर्ण घटना आज भी करोड़ों लोगों को ताकत देती है। ये घटना बताती है कि जिस राष्ट्र की नई पीढ़ी अत्याचार और शोषण के खिलाफ घुटने टेक देती है, उसका कोई भविष्य नहीं होता। वीर बाल दिवस के मौके पर होने वाले कार्यक्रमों से साहिबजादों की शहादत का ये संदेश हमेशा-हमेशा हमारी आने वाली पीढ़ी को मिलता रहेगा।

-राजेश कुमार पासी

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