Monday, February 24, 2025

अनमोल वचन

प्रभु का नाम जपने का अर्थ है उनका संग करना, उनका सामीप्य करना, उनके निकट रहना। जिस प्रकार मित्रों का संग करने, उनके समीप रहने, उनके सानिध्य में रहने पर वे अपनी सारी बातें तुम्हारे सामने प्रकट कर देते हैं उसी प्रकार परममित्र परमेश्वर का संग करने पर वे अपना तत्व तुम्हारे सामने प्रकट कर देंगे, परन्तु सब जानते-समझाते हुए भी हम प्रभु को भुला बैठते हैं उनकी संगति उनका सानिध्य नहीं करते, उनका स्मरण भी नहीं करते। भुलाने का अर्थ यह नहीं कि उनका नाम नहीं लेते। नाम तो उनका हम बहुत लेते हैं, परन्तु उनकी आज्ञा नहीं मानते। उनकी अवज्ञा करना, उनकी अवहेलना करना ही उन्हें भुलाना है। मन में कोई बुरा विचार आया उस समय आत्मा के माध्यम से परमात्मा की जो भी आज्ञा मिले उसी के अनुसार हमें अपना आचरण करना चाहिए, परन्तु हम उनकी आज्ञा जो आत्मा के माध्यम से हमें मिली, उस आज्ञा की उपेक्षा कर देते हैं और बुरे विचार को कार्य रूप दे देते हैं। यही तो परमात्मा को भुलाना है। इन द्वन्दों से बचने का सरल सा उपाय है कि जैसे ही कोई बुरा विचार मन में आया तत्काल परमात्मा को याद करो, उनकी सत्ता को अपने सामने समझो मानो हम उनके संग बैठे हैं और वे बुरा काम न करने की आज्ञा दे रहे हैं। हमारी आत्मा के माध्यम से वे हमें अच्छे बुरे की अनुभूति देते भी है। आत्मा के द्वारा उनका जो आदेश मिले उसका पालन करे। यही उनका जप है, यही उपासना है और यही उनका स्मरण है।

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