Friday, October 11, 2024

नवरात्र विशेष: बदलिए कन्या पूजन का ढंग….सचमुच बनाइए कन्याओं को शक्ति रूपा

देश भर में आजकल नवरात्र चल रहे हैं। अष्टमी व नवमी पर कन्या पूजन की पुरातन व समृद्ध परंपरा है। इन दो दिनों में सनातनी हिंदू घर-घर से ढूंढ ढूंढ कर कुमारी कन्या ऑन को पूजते एवं जीमाते हैं। देवी मां के भक्ति इन कन्याओं के चरण होते हैं इन्हें भोजन करते हैं एवं नए वस्त्र एवं उपहार आदि भेंट करके पुण्य कमाते हैं। हर साल वर्ष में दो बार यह परंपरा निभाई जाती है जो दर्शाती है कि इस देश में कन्याओं का भारी सम्मान है लेकिन कुछ अनुत्तरित प्रश्न हर बार पीछे छूट जाते हैं. यदि कन्याओं का सम्मान है तो फिर क्या वजह है कि उन्हें समाज में उनका उचित स्थान आज तक भी नहीं मिल पाया है और उनके साथ बलात्कार एवं यौन शोषण के प्रकरण प्रकाश में आते रहते हैं। अच्छी परंपराओं का निभाया जाना अच्छी बात है लेकिन केवल परंपरा निर्वाह का दिखावा करना किसी भी स्थिति में अच्छा नहीं है. आइए, इन नवरात्रों में सार्थक नवरात्रि एवं कन्या पूजन पर कुछ चिंतन करें।
नवरात्रों में मां दुर्गा के नव रूपों का  वंदन एवं पूजन करते हैं । भक्तों में मान्यता है कि देवी मां शक्ति का प्रतिरूप है और वह नौ अलग-अलग रूपों में ममत्व, वात्सल्य, पराक्रम, वीरता की प्रतिमूर्ति होने के साथ-साथ दुष्ट दलन के एवं भक्तों की रक्षा भी करती हैं और उनके प्रतिरूप के रूप में ही कुमारी कन्याओं का पूजन किया जाता है लेकिन जब उन्हीं शक्ति रूपा कन्याओं का शोषण होता है तो फिर उनके शक्ति रूपा होने पर संदेह होने के साथ-साथ उसे समाज की नीयत पर भी संदेह होता है जो एक और तो कन्याओं का पूजन करता है, वहीं दूसरी ओर उन्हें अपनी हवस का शिकार भी बनाता है।
भूखे को भोजन कराना हिंदू धर्म में बहुत ही पुण्य प्रदान करने वाला माना जाता है और वर्ष में हिंदू लोग कई ऐसे अवसर निकाल ही लेते हैं, जिसमें भी यह सब करते हैं और उससे आत्मिक शांति का अनुभव भी करते हैं लेकिन वर्तमान संदर्भ में यदि नवरात्र को देखें तो इसमें अमूमन संपन्न घरों की, आस पड़ोस की बच्चियों को ही जिमाया जाता है । कहीं कूड़ा बीनती, सफाई का कार्य करती या फिर दूसरों के घरों में काम करने वाली बाइयों की बच्चियों बहुत कम ही जीमती हुई देखी गई हैं । ऐसा कन्या भोज कितना उचित है, आज इस पर विचार मंथन एवं चिंतन की जरूर प्रतीत होती है।
भक्तजन नवरात्रों में देवी मां का वंदन करते हैं और कामना करते हैं कि मां हम पर अपनी करुणामयी कृपा करेंगी और वह करती भी हैं। कहा जाता है कि मां से बड़ा कृपालु दयावान और करुणामयी कोई दूसरा हो ही नहीं सकता और मां कभी अपने बच्चों से नाराज नहीं हो सकती। अगर हो भी जाए तो वह किसी भी रुप में उनका अहित न स्वयं करती है और न ही किसी और को करने देती है । इसलिए इस बात से भक्त निश्चिंत रहें कि यदि किसी वजह से वें व्रत उपवास न कर पाए या कन्या जिमाने का कार्य न कर पाए हों तो मां नाराज हो जाएंगी। निश्चित ही मां नाराज नहीं होंगी लेकिन जब वह अपने बच्चों को कुछ सार्थक करते हुए देखेंगीं तो कहीं अधिक प्रसन्न होकर अधिक कृपा की वर्षा करेंगी।
समय की मांग है कि हम नवरात्र समय काल देश और परिस्थिति के अनुसार थोड़ा हटकर मनाएं। यदि केवल दिखावे के लिए या पुण्य कमाने के लिए कन्या पूजन करेंगें तो अपशकुन तय है। इसलिए सावधानी बरतें । अब नवरात्र उपवास के पश्चात सबसे महत्वपूर्ण समझे जाने वाले कन्या पूजन पर आते हैं।
चिकित्सा विज्ञान कहता है कि बहुत अधिक खाना या खाने में बहुत अधिक चिकनाई अथवा मुश्किल से पचने वाले पदार्थ का होना स्वास्थ्य खराब कर सकता है और बच्चियां तो बहुत छोटी होती हैं. नवरात्रों में इन कन्याओं को एक-एक नहीं, कई कई घरों में जीमते हुए देखा जा सकता है। अब बच्चों को तो अधिक ज्ञान नहीं मगर यह हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें बीमारी का शिकार न बनने दें। बजाय पकवान बनाने के पोषक तत्वों वाला संतुलित खाना उन्हें परोसें । इससे भी बेहतर हो कि उन्हें ड्राई फ्रूट आदि देने की परंपरा शुरू करें ताकि बच्चे लंबे समय तक उन्हें का भी सके और उन्हें सही पोषण भी मिल सके।
इससे भी बढ़कर कन्या जिमाने के पीछे का सबसे बड़ा भाव होता है बालिकाओं को सम्मान देना इसलिए सामाजिक रूप से ऐसा वातावरण तैयार करें कि केवल  कन्याओं को ही नहीं, संपूर्ण महिला शक्ति को सम्मान से जीने का वातावरण मिले।
आप दूसरे तरीके से दान करके भी पुण्य कमा सकते हैं. अनेक ऐसे लोग हैं जो गरीबी के चलते पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं ले पा रहे हैं। इसके लिए आप अपने आसपास की किसी भी धार्मिक संस्था या एनजीओ को यह बता दें कि आप कितने लोगों को भोजन या वस्त्र आदि दान करना चाहते हैं और ऐसे में नियत समय पर आकर उनका प्रतिनिधि आपसे वह भोजन वस्त्र ले जाए तथा उस भोजन को जरूरतमंदों कुष्ठ रोगियों अनाथालय कारागार आदि के जरूरतमंद लोगों को जिनमें कन्याएं भी हो सकते हैं, खिला सकता है। साथ ही साथ अपनी श्रद्धा अनुसार उपयुक्त दक्षिणा भी उस संस्था को दान भी दे सकते हैं। इससे उन्हें काफी मदद मिलेगी और कन्या पूजन भी हो जाएगा।
इस लेख का मंतव्य धार्मिक मान्यताओं को नकारना नहीं अपितु समय, काल एवं परिस्थिति के अनुसार उन्हें और अधिक सार्थक बनाने का है। इसलिए बच्चियों को दक्षिण में नकद पैसे न देकर यदि उनके लिए स्कूल की यूनिफॉर्म, किताबें उनके लिए पढ़ाई लिखाई का सामान अथवा उनके खाने-पीने की ऐसी वस्तुएं दें जो लंबे समय तक में प्रयोग में ला सकें तो शायद नवरात्र कहीं अधिक सार्थक होगा।
इन सब से भी बढ़कर हमें बजाय उन बच्चों को जिमाने या पूजने के जो पहले से ही संपन्न घरों से संबंध रखते हैं और जिनके पास पर्याप्त संसाधन है, हम स्कूलों के माध्यम से सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से या श्रम अपने आप ढूंढ कर ऐसे बच्चों की मदद करें जिन्हें वास्तव में मदद की जरूरत है। यदि आप प्रतिवर्ष केवल एक कन्या को भी उसकी वार्षिक फीस यूनिफॉर्म पढ़ाई लिखाई के सामान आदि दे पाएं तो एक स्त्री जीवन को आप सचमुच शक्ति रूपा बनने में मदद कर रहे होंगे और यह सबसे अच्छी देवी आराधना होगी।
और अंत में, भूलकर भी उपहार में प्लास्टिक का सामान न तो दें, न ही प्लास्टिक के बर्तनों में उन्हें भोजन कराएं, क्योंकि इससे उनके शरीर में माइक्रोप्लास्ट के जाने का खतरा बढ़ जाता है और कैंसर होने की संभावना भी अधिक हो जाती है। उम्मीद है जिन कन्याओं को आप पूज रहे हैं, उन्हें ऐसा भयंकर उपहार कदापि नहीं देना चाहेंगे।
-डॉ0 घनश्याम बादल

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