परमपिता परमात्मा ने हमें संसार की सब योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानव योनि प्रदान की है, सुन्दर शरीर प्रदान किया, बुद्धि तथा विवेक दिया। इसे प्रभु की अमानत मानकर हमें इसकी सुरक्षा करनी चाहिए। जैसे हम किसी मकान में रहते हैं उसे झाड़ बुहारकर साफ रखते हैं। रंग-रोगन उसकी सुरक्षा करते हैं।
कहीं से टूट गये तो तुरन्त उसकी मरम्मत करते हैं, उसे हर प्रकार स्वच्छ और सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं। यदि हम उसकी उपेक्षा कर उसे उसके हाल पर छोड़ दें, उसकी सफाई न करे, उसमें कूड़ा-करकट भरते रहें तो वह सभी को बुरा लगेगा। वह जर्जर होकर अल्प समय में ही खंडहर हो जायेगा, रहने योग्य भी नहीं रहेगा।
वैसे ही यदि हम शरीर की उपेक्षा करेंगे, उसे समय पर भोजन-पानी न दें अथवा आवश्यकता से अधिक भोज्य एवं पदार्थ ठूंस-ठूंस कर भरते रहेंगे, तो उसकी भी वहीं दशा होगी जैसे हमारे मकान की। इसलिए हमें परमात्मा के इस वरदान को उसी श्रद्धा भाव से इसके साथ व्यवहार करना चाहिए तो वह चिरकाल तक स्वस्थ और क्रियाशील बना रहेगा।