Tuesday, January 28, 2025

पहला प्यार: कहीं जीवन का बोझ न बन जाए

कहा जाता है कि पहला प्रेम अविस्मरणीय होता है और भुलाये नहीं भूलता। प्रथम प्रेम मन पर गहरा असर छोड़ जाता है। अगर पहला प्रेम असफल हो जाता है तो मन उस यज्ञकुंड के समान हो जाता है जिसमें से केवल धुंआ ही निकलता रहता है। शादीशुदा होने के बाद भी पहले प्रेम की स्मृतियों को लेकर कई लोग परेशान रहते हैं और अपने दांपत्य जीवन को कष्टमय बना डालते हैं।

ऐसा कोई नहीं है जिसे कभी न कभी, किसी न किसी रूप या शक्ल में प्रेम नहीं मिला और ऐसा भी कोई नहीं है जिसने कभी न कभी, किसी न किसी शक्ल में प्रेम को खोया न हो। यह खोना जिंदगी का ठहराव नहीं है और न ही इति ही है। जीवन तो इसे ‘पाने’ और ‘खोने’ से ऊपर है।

नारी, पत्नी के रूप में पति की मार्गदर्शक

प्रेम जब जीवन का संबल बन जाता है तो सार्थक बन जाता है। जिसे आपने चाहा, वह आपको नहीं मिला लेकिन जिसे आपने चाहा, उसने चाहा कि आप आसमान की बुलंदियों को छू लें। आपने अगर उन बुलंदियों को छू लिया तो उसका प्रेम सार्थक हो गया। प्रेम अगर आपकी प्रेरणा है तो ‘प्रिय’ आपको हासिल हो या न हो, आपका प्रेम सच्चा है और सार्थक है।

कभी-कभी दिल तो बहुत कुछ चाहता है परन्तु तकदीर कुछ नहीं होने देती। अधिकतर यही होता है कि दुनियावी तौर-तरीकों तथा रवायतों के आगे दिल हार जाता है। दिल की यह हार या तो व्यक्ति को तोड़ देती है या फिर तटस्थ बना डालती है। कहने को तो कह दिया जाना है कि ‘जो बीत गई, सो बात गई’ या फिर ‘बीती ताहि बिसार दे’ लेकिन क्या सचमुच बात बीत जाती है? क्या कोई भी इंसान बीती को बिसार सकता है?

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सवाल यह नहीं है कि जिंदगी में प्रेम की शक्ल में जो मिला, वह हमेशा के लिए आपका हो गया या छूट गया। सवाल यह है कि उस प्रेम ने आपका क्या किया? आपको मजबूती दी या कमजोर बनाया? ऐसी कितनी ही फिसलनें हैं जो अखरती हैं, खटकती हैं लेकिन क्या ये सिर्फ प्रेम के मामले में ही होती हैं? ऐसा नहीं है। जीवन में ऐसी कितनी ही अटकनें और खटकनें होती हैं जिन्हें जीवन में साथ लेकर चलना होता है। प्रेम इनमें से एक हो सकता है।

प्रेम निश्चित रूप से एक उच्च भावना है जिसमें त्याग निहित होता है। प्रेम से भी बढ़कर कर्तव्य का स्थान होता है। प्रेम प्रवाह हो सकता है किंतु अंत नहीं। प्रेम दिशा दे सकता है, ध्येय नहीं। प्रेम दुःख दे सकता है परन्तु उस दुःख की दवा भी प्रेम ही है। अतीत के प्रेम को भुलाकर वर्तमान के प्रेम की हरियाली में अपने जीवन को संवारकर तो देखिए।

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इंसान के मन और जीवन का ताना-बाना इस कदर अजीबो-गरीब ढंग से बुना गया है कि दोनों के बीच तालमेल बनाये रखना अक्सर आसान नहीं होता। मन के अनुरूप जीवन प्रायः नहीं मिलता परन्तु जीवन के अनुरूप मन को अवश्य ही ढाला जा सकता है।

अतीत का अपना महत्त्व होता है। मनुष्य की कितनी ही अच्छी या बुरी आदतें उम्र भर पीछा नहीं छोड़तीं लेकिन अतीतजीवी होकर जिया नहीं जा सकता। वह एक मानसिक रोगी हो सकता है तथा उसका व्यक्तित्व कुंठित हो सकता है। वह अपने जीवन में सफलता को नहीं पा सकता।

प्रेम की छलना से जो दर्द मिला है, उसे प्रेम के मरहम से ही दूर करना चाहिए। अतीत का प्रेम अगर रेगिस्तान है तो वर्तमान का प्रेम सदाबहार वन है। पहले प्रेम के बोझ को चिपकाकर सुखमय दांपत्य जीवन को नीरस बना डालना बुद्धिमानी नहीं होती।

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