आज वसंत पंचमी है, जिसे वसंत ऋतु की आहट या वसंत का पर्दापण मानते हैं। वसंत भी ब्रह्मांड के ऋतु चक्र में अन्य ऋतुओं के समान आता रहता है। वसंत और पतझड प्रतिवर्ष ऐसे ही प्राकृतिक रूप में आते रहते हैं। आध्यात्मिक आधार पर कहा जाये तो जैसे बाहर के वातावरण में वसंत है वैसे ही भीतर भी वसंत घटता और जैसे बाहर पतझड है वैसे भीतर भी पतझड आता है। अन्तर केवल इतना है कि बाहर के वसंत और पतझड प्रकृति से संचालित हैं अनिवार्य रूप से आते हैं, वहीं भीतर के वसंत और पतझड के जनक हम स्वयं हैं। आप स्वतंत्र हैं चाहे पतझड हो जाओ चाहे वसंत हो जाओ तात्पर्य यह है कि अपने भीतर प्रकट होने वाले मौसम के लिए सर्वथा हम ही उत्तरदायी हैं। यदि हम चाहे तो अपने भीतर सदैव वसंत प्रकट कर सकते हैं और चाहे तो पतझड को बुला सकते हैं अर्थात हम अपने भीतर प्रकट होने वाली ऋतुओं को अपनी चेतना से नियंत्रित कर सकते हैं, क्योंकि हमारे भीतर प्रकट होने वाली ऋतुएं वस्तुत: हमारे ही सोच चिंतन एवं कर्मों के कारण प्रकट होती है। यदि हम श्रेष्ठ एवं सकारात्मक विचारों को ही अपने मस्तिष्क में प्रधानता दें तो हमारे जीवन में सदैव वसंत बना रहेगा।