गायत्री मंत्र ईश्वर की महिमा और प्रार्थना से युक्त एक भाव पूर्ण मंत्र है जिसे भक्त लोग आजकल टेप-रेकार्ड पर कैसेट द्वारा श्रवण करते हैं। यजुर्वेद का यह मंत्र गहरा अर्थपूर्ण ही नहीं है बल्कि इसे आत्मसात् करना चाहिए।
मंत्र है-
ओउम् भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य
धीमहि धियो योन: प्रचोदयात्।’
इसका अर्थ है:- हे ईश्वर !
तूने हमें उत्पन्न किया, पालन कर रहा है तूं।
तुझसे ही पाते प्राण हम, दुखियों के कष्ट हरता है तूं।।
तेरा महान तेज है, छाया हुआ है सभी स्थान।
सृष्टि की वस्तु-वस्तु में, तूं हो रहा है विद्यमान।।
तेरा ही धरते ध्यान हम, मांगते तेरी दया।
ईश्वर हमारी बुद्धि को, श्रेष्ठ मार्ग पर चला।।
मंत्र-रचनाकार ने यह मंत्र कब कहा? जब उसने ईश्वर की महिमा को साक्षात् देखा, अनुभूत किया तब इसे कहा और लिखा। हम भक्त लोग क्या करते हैं? सिर्फ जुबान से तो कह रहे हैं लेकिन अनुभूति नहीं करते कि ईश्वर के भर्गो स्वरूप का साक्षात्कार तो करें। उसके महान तेज को प्रत्यक्ष में तो देखें। सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है वह ईश्वर, तो क्या हमारे अंदर नहीं है?
क्या हमें इस बात पर विश्वास है कि ईश्वर हमारे अंदर मौजूद हैं? नहीं। नहीं!! इस बात पर हमें कतई विश्वास नहीं है कि ईश्वर हमारे अंदर हैं अन्यथा उसे बाहर ढूंढऩे के बजाए अपने ही अंदर उसका दर्शन करना चाहिए। कहा है न,
वस्तु कहीं, ढूंढे कहीं, केहि विधी आवे हाथ।
अर्थात् परमपिता परमात्मा की उपस्थिति तो हमारे ही अंदर है और ढूंढ रहे हैं बाहर तो भला कैसे मिलेगी? असंभव है। जहां पर जो वस्तु रखी हुई है वहीं पर, उसी स्थान से तो वह वस्तु प्राप्त होगी। और यदि उस वस्तु की, यानी कि परमात्मा की जानकारी प्राप्ति नहीं हो रही है तो जिसने जाना है, प्राप्त किया है, जो परमात्मा के भेद को-रहस्य को भली भांति जानता है उससे मदद लेनी चाहिए।
मदद भी कैसी? कोई फीस नहीं, कोई भेद-भाव नहीं, कोई शर्त नहीं, कोई नियम नहीं बल्कि एकदम सरलता से, सहजता से, श्रद्धा व विश्वास से, जिज्ञासा भाव से स्वीकार करने की मन:स्थिति होनी चाहिए।
तेरा ही धरते ध्यान हम’ भला किसका ध्यान धरते हैं? कभी सोचा है? जब-जब भी ध्यान धरने बैठते हैं तो ध्यान हमारा कहां रहता है? परिवार में, बाजार में, धंधे रोजगार में, मित्रों के पास ध्यान चला जाता है और मुख से कह रहे हैं, दुनिया को बनाने के लिए ‘ध्यान’ कर रहे हैं। कैसे होगा ध्यान? जब तक परमात्मा के स्वरूप को देखा नहीं, तब तक ध्यान भला कैसे होगा?
एक कुंवारी कन्या से कहा जाये कि पति का ध्यान करो तो वह कर पायेगी क्या क्योंकि उसने पति देखा ही नहीं और कल्पना करने से ध्यान गलत होगा। हां, एक बार वह अपने पति को साक्षात् देख लेगी तो सरलता से सही रूप में ध्यान कर सकती है।
इसी प्रकार भगवान का साक्षात्कार किए बिना ध्यान कैसा? और चूंकि कल्पना से परे हैं परमात्मा, इसलिए कल्पना तो करनी भी नहीं चाहिए। कल्पना उस चीज की की जाती है जो मौजूद नहीं है, जिसका कोई अस्तित्व नहीं है लेकिन जो चीज साक्षात् है, प्रत्यक्ष है, उसकी कल्पना करने की भला क्या जरूरत? तो सर्वप्रथम आवश्यकता है भगवान का साक्षात्कार करने की, उसके ज्योति स्वरूप का दर्शन करने की। तभी बात बनेगी।
यदि एक भूखा व्यक्ति यह कहे कि ‘मैं भोजन कर रहा हूं’ और इसका जप करे तो क्या भूख मिट जाएगी? एक प्यासा व्यक्ति कहे, मैं पानी पी रहा हूं? और इन शब्दों का जप करे तो क्या प्यास बुझ जाएगी।
कदापि नहीं। यह हम सभी जानते हैं। तो भगवान के बारे में ऐसा क्यों करते हैं? मैं तेरी ज्योति का ध्यान करता हूं, कहने से काम नहीं बनेगा बल्कि साक्षात् अनुभव करना होगा, तभी गायत्री मंत्र का भाव समझ सकते हैं।
– आरडी अग्रवाल ‘प्रेमी’