स्मार्ट फोन, लैपटॉप, इंटरनेट और सोशल मीडिया की वजह से आजकल हर पल हर कोई सूचनाओं के अथाह भंवर में डूबता-उतराता रहता है। वहीं, तकनीकी विकास के कारण उपलब्ध सुख-सुविधाओं के संसाधन तथा लुभावने विज्ञापनों के माध्यम से उपभोक्तावाद को बढ़ावा देता बाजार अपना मोहक जाल उसके सामने फैलाए रहता है। नतीजतन चिंता, तनाव और अवसाद की तिकड़ी मौजूदा सदी की सबसे खतरनाक बीमारी के रूप में हमारे सामने है।
सबसे पहले बात चिंता की। व्यक्ति जब चिंता की चपेट में आता है तो इसके फलस्वरूप रक्तचाप और दिल की धड़कन की गति बढ़ जाती है, पसीना आने लगता है, प्रमुख मांसपेशी समूहों के लिए रक्त का बहाव बढ़ जाता है और प्रतिरक्षा तथा पाचन तंत्र प्रणालियाों में रुकावट आ जाती है। चिंता का प्रभाव केवल शारीरिक क्रियाओं पर ही नहीं होता, बल्कि व्यक्ति भावनात्मक प्रभावों को भी झेलने को विवश हो जाता है। मसलन, आशंका या भय की भावना का प्रबल होना, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई महसूस करना, स्वयं के निकृष्टतम होने का अनुमान लगाते रहना, चिड़चिड़ापन, बेचैनी, खतरे या घटना के संकेतों को महसूस करना, दु:स्वप्न, दुराग्रह आदि व्यक्ति को घेर लेते हैं।
रोजमर्रा की भागदौड़ से भरे जीवन में चिंता होना स्वाभाविक है, लेकिन लगातार चिंता में घिरे रहना खतरनाक हो सकता है। चिंता यदि मन में स्थायी रूप से घर बना ले तो बीमारी का रूप ले लेती है। ऐसे में जरूरी है कि मनोचिकित्सक से खुलकर बात करें और उनकी सलाह पर पूरी तरह अमल करें। मनोचिकित्सा यह जानने में मदद करती है कि आपकी भावनाएं उसके व्यवहार को कैसे प्रभावित करती हैं। इसे टॉक थेरेपी भी कहा जाता है।
एक प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिंताग्रस्त आपके विचारों और भावनाओं के बारे में सुनता है, आपसे बात करता है। वह आपके चिंता विकार को समझने और प्रबंधित करने के तरीके सुझाता है। मनोचिकित्सा आपको नकारात्मक या घबराहट पैदा करने वाले विचारों और व्यवहारों को सकारात्मक में बदलना सिखाती है। इससे आप बिना किसी चिंता के भयभीत या चिंताजनक स्थितियों को ध्यान से देखने और प्रबंधित करने के तरीके सीखते हैं।
इसके साथ ही जरूरी है कि आप नकारात्मक विचारों से दूर रहें। दोस्तों के साथ मेलजोल बनाए रखें। किसी से सहायता मांगने में हिचकिचाएं नहीं। अपने दिनभर के क्रियाकलाप को डायरी में लिखने की आदत डालें। इससे चिंता से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी।
चिंता जब चिंतित करने की सीमा पार कर जाती है तो व्यक्ति तनावग्रस्त होने लगता है। तनाव एक बहुत ही साधारण मानवीय प्रतिक्रिया है, जो हर व्यक्ति के साथ होता है। मानव शरीर की बनावट ही ऐसी है कि वह तनाव का अनुभव करे और उस पर प्रतिक्रिया भी दे। जब आप परिवर्तनों या चुनौतियों को अनुभव करते हैं, तो आपका शरीर शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रियाएं करता है। असल में इसे ही तनाव कहा जाता है।
तनाव एक द्वन्द्व है, जो मन एवं भावनाओं में गहरी दरार पैदा करता है। तनाव अनेक मनोविकारों का प्रवेश द्वार है। इससे मन अशान्त रहने लगता है। ऊर्जाहीन होने की अनुभूति से कार्यक्षमता प्रभावित होती है। शारीरिक व मानसिक विकास में व्यवधान आता है। आज के समय में तनाव लोगों के लिए बहुत ही सामान्य अनुभव बन चुका है, जो कि अधिसंख्य दैहिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं द्वारा व्यक्त होता है।
तनाव से छुटकारा पाने के लिए जीवन में जो कुछ अच्छा है, उसका आनंद उठाएं, जो नहीं है उसका विलाप न करें। ऐसे लोगों से जुड़े रहें, जिनके साथ रहने से खुश महसूस करते हों, जो हर परिस्थिति में भावनात्मक समर्थन दें। एक बात और, जब कभी तनाव महसूस करें तो उसके विवरणों को लिख लें। दैनिक रूप से विवरण लिखने से तनाव के पैटर्न का अंदाजा मिल जाएगा और इससे छुटकारा पा सकेंगे।
तनाव से मुक्ति के लिए समय का बेहतर प्रबंधन भी अति आवश्यक है। हर काम को पूरी दक्षता के साथ करें। किसी के प्रति नाराजगी को मन से बाहर निकाल फेंकें। माफ करना सीखें। दूसरों को माफ करके आप अपनी नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त होते हैं। भरोसेमंद लोगों से बात करें। यदि आप अपनी भावनाएं दूसरों को बताते हैं, तो भले ही बात करने से हालात में बदलाव न आ पाए, मगर आप इससे हल्का अवश्य महसूस करेंगे। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में कहा है –
कहेहु से कछु दुख घटि होई।
काहि कहौं यह जान न कोई।।
इसके साथ ही स्वस्थ और संतुलित जीवनशैली अपनाएं, मनोरंजन के लिए समय निकालें। जो लोग तनाव देते हैं, उनसे बचकर रहें। जिन चीजों या परिस्थितियों को बदल नहीं सकते, उन्हें स्वीकारें। अपनी भावनाओं को व्यक्त करना और स्थितियों से समझौता करना सीखें। इन उपायों के बाद भी यदि तनाव साथ न छोड़े तो बिना किसी संकोच के किसी योग्य मनोचिकित्सक या स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से मिलें।
जो लोग चिंता और तनाव पर काबू पाने में विफल रहते हैं तो अवसाद उन्हें अपने शिकंजे में ले लेता है। ऐसे व्यक्ति के लिए सुख, शांति, सफलता, खुशी यहां तक कि सभी संबंध बेमानी हो जाते हैं। उसे सर्वत्र निराशा, तनाव, अशांति, अरुचि प्रतीत होती है। आक्रामकता, नास्तिकता, अनास्था, अपराध और अकेले रहने की प्रवृत्ति पनपने लगती है। यहां तक कि वह आत्महत्या के बारे में सोचने लगता है। ऐसे में परिवार वालों और मित्रों का दायित्व बनता है कि अवसादग्रस्त व्यक्ति को अकेले न छोड़ें और उसे खुशनुमा वातावरण दें। उसके कार्यों में कमियां न निकालें। उसकी रुचियों को प्रोत्साहित कर उसमें आत्मविश्वास जगाएं। अवसाद के कारणों के बारे में जानने का प्रयत्न करें।
अपने करीबियों से दिल का हाल कहना अवसाद का सबसे कारगर इलाज है। व्यायाम को दिनचर्या में शामिल करना भी लाभप्रद रहता है। व्यायाम करने से शरीर में एंडोरफिन हार्मोन निकलता है, जो अवसाद को खत्म करने में सहायक होता है। योग का सहारा लें। अनुलोम-विलोम, प्राणायाम, ध्यान को सीखकर इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लें। सकारात्मक कहानियां, प्रेरक प्रसंग पढ़ें।
संस्कृत का श्लोक है –
मर्कटस्य सुरापानं तत्र वृश्चिकदंशनम्।
तत्रापि भूतसंचार: यद् वा तद् वा भविष्यति।।
अर्थात् पहले तो बंदर मदिरापान कर ले, फिर उसे बिच्छू डंक मार दे और उसके बाद भूत का उपद्रव हो जाए। फिर तो जो होना है वही होगा, उसे कोई टाल नहीं सकेगा। इसी प्रकार कोई व्यक्ति बात-बेबात चिंता करते हुए तनावग्रस्त रहा करे और दिन-ब-दिन अपनी कार्यक्षमता खोते हुए अवसाद में चला जाए, फिर तो उसका भगवान ही मालिक है।
याद रखें, जीवन में छोटे-बड़े कारणों को लेकर चिंता अपना जाल अवश्य ही फैलाएगी, बुद्धिमानी इसी में है कि उसे दरकिनार कर चिंता के कारणों पर चिंतन करें और उसे तनाव के स्तर तक जाने ही नहीं दें। फिर अवसाद को आपके पास फटकने का मौका ही नहीं मिल पाएगा।
-मोहन मंगलम