जो व्यक्ति मन वाणी और कर्म द्वारा अच्छे कार्य करेगा, उसका किसी से द्वेष नहीं होगा, वह किसी से ईर्ष्या भी नहीं करेगा। यह अटल सत्य है। ऐसा व्यक्ति सभी के प्रति स्नेह भाव रखेगा, सबसे प्यार करेगा। प्रेम अपने लिए भी कल्याणकारी है और समाज के लिए भी। प्रेम मनुष्य में सेवा का भाव उत्पन्न करता है। सेवा से त्याग भावना पैदा होगी है और त्याग मनुष्य को संतोष रूपी सुख प्रदान करता है, जिसके पास संतोष है वह संसार का सबसे सुखी और धनाढ्य व्यक्ति है। संतोष का सुख सात्विक और अलौकिक है। भाव एक ही है कि शुभ कर्म की ही सोचना, शुभ वचन ही बोलना और कर्म भी केवल शुभ ही करना। ऐसा कुछ भी न करें जिससे छिपाना अनिवार्य प्रतीत होता हो। याद रहे कि जिसे छिपाना पड़े वही पाप है। इसलिए सदैव पाप कर्म से बचे और शुभ कर्म करें।