चंडीगढ़। हरियाणा विधानसभा में बजट सत्र के आखिरी दिन बुधवार को विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद सरकार ने हरियाणा संगठित अपराध नियंत्रण विधयेक-2023 (हरकोका) विधेयक पारित कर दिया। इसे संशोधन कर पेश किया गया था।
बुधवार को सदन में जब अंतिम दिन की कार्यवाही अंतिम चरण में थी तभी मुख्यमंत्री ने यह विधेयक सदन के पटल पर रखा। कांग्रेस विधायक शमशेर गोगी ने इसका विरोध किया। कांग्रेस विधायक वरुण मुलाना व कई अन्य चाहते थे कि इसमें और संशोधन किया जाए। हंगामे के चलते दो बार सदन की कार्रवाई स्थगित भी करनी पड़ी।
दरअसल, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में पहले से संगठित अपराध से निपटने के लिए कानून बनाया हुआ है। हरियाणा ने वर्ष 2021 में भी इस विधेयक को पास किया था, लेकिन राष्ट्रपति भवन की आपत्तियों के चलते यह वापस आ गया। इस विधेयक को संशोधन करके भेजा तो उसमें भी कुछ कमियां रह गईं। इसके बाद सरकार ने महाराष्ट्र सहित उन सभी राज्यों के कानून का अध्ययन किया और कानूनी राय लेने के बाद विधेयक में संशोधन किया।
बुधवार को विपक्ष के विरोध और भारी हंगामे के बीच भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने बहुमत से इस विधेयक को पारित कर दिया। अब यह विधेयक पहले राज्यपाल के पास जाएगा और फिर इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। संशोधित विधेयक से ‘एडवोकेट’ शब्द को सरकार ने हटा दिया है। कांग्रेस विधायक चाहते थे कि इस विधेयक को सिलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इससे साफ इंकार करते हुए कहा कि पूर्व में भी दो बार बिल पास हो चुका है। अब इसमें देरी नहीं होगी।
कांग्रेस विधायक शमशेर गोगी ने कहा कि ऐसा करके पुलिस स्टेट की ओर बढ़ रहे हैं और इससे लोकतंत्र की हत्या हो जाएगी। एक बार तो ऐसे हालात पैदा हो गए कि गोगी अपनी खुद की पार्टी के खिलाफ ही आ डटे। उन्होंने कहा, ‘मैं व्यक्तिगत तौर पर इस विधेयक के खिलाफ हूं। भले ही पार्टी इसके समर्थन में हो’। हंगामे के बीच कांग्रेस विधायक शोर मचाते हुए स्पीकर बेल तक पहुंच गए। मामला बढ़ता देख मुख्यमंत्री के सुझाव पर स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने 15-15 मिनट के लिए दो बार विधानसभा स्थगित की। कांग्रेस विधायक किरण चौधरी, बीबी बत्तरा समेत कई विधायकों ने इसमें संशोधन के सुझाव दिए।
मुख्यमंत्री ने बताया कि हरकोका के तहत पुलिस महानिरीक्षक या इससे ऊपर के रैंक के आईपीएस अधिकारी की मंजूरी के बाद ही केस दर्ज होगा। आरोपों की जांच पुलिस उप अधीक्षक या उससे ऊपर के रैंक का अधिकारी ही करेगा। पुलिस अधिकारियों के समक्ष बयान दर्ज कराने के बाद दोषियों का बयान न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किया जाएगा। तीन वर्ष या उससे अधिक के कारावास वाले संज्ञेय अपराध के मामले में अगर 10 वर्ष की अवधि में अगर एक से अधिक आरोप-पत्र दाखिल होता है तो उस पर ज्यादा सख्ती होगी।