आज का मनुष्य स्वभाव से व्यावसायिक प्राणी बन गया है। प्रतिक्षण वह अपने व्यवसाय के उत्थान-पतन के संदर्भ में चिन्तनशील रहता है। जिसके पास व्यवसाय नहीं होता वह अपने भविष्य को संवारने के लिए जिज्ञासु होता है कि उसे कौन-सा व्यवसाय अपनाना चाहिए, जिसमें उसे असफलता का मुंह नहीं देखना पड़े। इस लेख में हम जन्म कुण्डली व हस्तरेखाओं के माध्यम से व्यवसाय के संदर्भ में प्रकाश डाल रहे हैं।
जिस प्रकार से जन्म कुण्डली के दशम् भाव से व्यक्ति के व्यवसाय के बारे में जानकारी मिलती है, उसी प्रकार से हस्त रेखाओं से भी व्यक्ति के व्यवसाय की जानकारी मिलती है। हस्त रेखाओं द्वारा व्यवसाय में सफलता तथा बाधाओं के बारे में भाग्य रेखा अर्थात् शनि रेखा से निश्चित तथा ठोस जानकारी मिलती है। भाग्य रेखा के अलावा मस्तिष्क रेखा व्यक्ति के मन में उठने वाले विचारों को बताती है तथा व्यवसाय के प्रति अपनी रुझान का संकेत करती है। कीरों ने मस्तिष्क रेखा को बैरोमीटर कहा है जो व्यक्ति के मन में आने वाले विचारों को जानने का कार्य करती है। इन दोनों रेखाओं के अलावा अंगुष्ठ का प्रथम पर्व तथा दोनों पर्वों को अलग करने वाली रेखा जिसे यव रेखा कहते हैं, वह भी व्यवसाय की स्थिति के बारे में बताती है। हाथ किस प्रकार का है, उससे भी व्यक्ति किस प्रकार का व्यवसाय करेगा तथा कितनी सफलता प्राप्त करेगा यह स्पष्ट रूप से पता चलता है।
मस्तिष्क रेखा- मस्तिष्क रेखा निम्न मंगल पर्वत के पास तथा गुरु पर्वत के बीच में जीवन रेखा के पास या इससे कुछ दूरी बनाकर निकलती हुई मंगल उच्च तथा चन्द्र पर्वत के मध्य आकर या फिर मंगल के मैदान पर आकर समाप्त होती है। जिस प्रकार मस्तिष्क रेखा मंगल तथा गुरु पर्वत के बाद आगे बढ़ती है, उसी प्रकार के व्यवसाय का यदि व्यक्ति चुनाव करे तो उस व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने की शत-प्रतिशत सम्भावना होती है। यदि मस्तिष्क रेखा सीधी उच्च मंगल पर जाकर रुकती है तो उसे प्रैक्टिकल व्यवसाय में रुचि लेनी चाहिए, जिसमें हाथ से काम करने की व्यवस्था हो। इसके लिए मशीनरी का निर्माण तथा उसका कार्य, हाथ की मजदूरी का काम, मकान आदि का निर्माण आदि आते हैं। अनुभव से देखा गया है कि इस प्रकार की स्थिति में भाग्य रेखा का प्राय: अभाव होता है। फिर भी यदि भाग्य रेखा मोटी है तो मजदूरी से तथा बारीक भाग्य रेखा कल पुर्जे आदि बनाने में सफलता का संकेत करती है। इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा जिसकी होती है, उसको मजदूरी या मेहनत के कार्य करने में परेशानी नहीं आती है।
यदि मस्तिष्क रेखा का झुकाव कुछ मंगल पर्वत के नीचे आता है तो उसे मानसिक कार्य करने चाहिए। जैसे- लेखक, कवि, खोजबीन करने वाले लेखक, जिसमें पत्रकारिता भी है, अध्यापक, प्रोफेसर, चिन्तक आदि। परन्तु चन्द्र पर्वत पर अधिक झुकाव छिपी हुई विद्या के बारे में संकेत करती है। यदि मस्तिष्क रेखा हृदय रेखा से दूरी बनाती हुई चन्द्र पर्वत के नीचे आती दिखाई दे और अपनी आकृति धनुष की तरह बना लेती है तो ऐसे लोगों में धर्म के प्रति रुचि होती है तथा वे धर्म प्रचारक होते हैं।
धर्म गुरु, पीठाधीश्वर, आदि के हाथों में इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा देखने में आती है। यदि हृदय रेखा तथा मस्तिष्क रेखा की दूरी कम हो तो व्यक्ति जो व्यवसाय करेगा केवल अपने हित को पहले देखेगा, चाहे उसमें किसी को कितना भी नुकसान हो। ब्याज पर पैसा कमाने वाले तथा ऐसे कर्म करने वाले जिनमें बिना मेहनत के अच्छी आमदनी है के हाथ में इस प्रकार की रेखा होती है। यह अनुभव सिद्ध है। कभी-कभी भाग्य रेखा कुछ लोगों की हथेली में नहीं दिखती उस व्यक्ति के भाग्य के बारे में आकलन हस्त रेखा का विद्वान मस्तिष्क रेखा से ही करता है। यदि मस्तिष्क रेखा की बनावट अच्छी नहीं है तथा सर्प की तरह बल खाती हुई दिखती है, उस स्थिति में व्यक्ति का मन स्थिर नहीं रहता तथा उसका सीधा प्रभाव उसके व्यवसाय या भाग्योदय पर साफ पड़ता है।
भाग्य रेखा बनाम शनि रेखा- हस्त रेखाओं में भाग्य रेखा का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इसका संबंध कुण्डली के नवम् तथा दशम् भाव से होता है भाग्य रेखा के साथ यदि सूर्य रेखा का भी अध्ययन किया जाए तो व्यवसाय के साथ व्यक्ति को कब मान-सम्मान मिलेगा, इसकी जानकारी मिलती है। शनिग्रह की कुण्डली में कैसी स्थिति है, के बारे में भाग्य रेखा निर्धारित करती है, वहीं सूर्य रेखा सूर्य ग्रह की स्थिति को हाथ में बताती है। जिस स्थान से हाथ में भाग्य रेखा का उद्भव होता है तथा जिस ग्रह की रेखा से भाग्य रेखा का संबंध होता है उस ग्रह से लगते व्यवसाय में व्यक्ति को सफलता मिलती है। भाग्य रेखा हथेली में जिस स्थान पर दिखती है तथा अपनी स्थिति अच्छी व सुन्दर बनाती है तथा जिस स्थान पर किसी प्रकार का भाग्य रेखा में दोष नहीं हो तो उस काल में व्यक्ति का भाग्योदय होता है अर्थात् उस समय में व्यक्ति अपना व्यवसाय शुरू करता है। यहीं से भाग्य रेखा का अध्ययन शुरू होता है। ज्यों-ज्यों भाग्य रेखा अपनी स्थिति अच्छी बनाएगी तथा अपना उठान ऊपर की ओर करके शनि पर्वत या गुरु पर्वत की ओर करती हुई दिखेगी, उस काल में व्यक्ति व्यापार या व्यवसाय में सफलता प्राप्त करता है, इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है। भाग्य रेखा से जब कोई बारीक छोटी रेखा शाखा के रूप में ऊपर की ओर उठती है तो वह काल व्यक्ति के लिए विशेष उन्नति का होगा। किस क्षेत्र में उन्नति होगी, उसका निर्धारण उस बारीक रेखा का किस ग्रह या मुख्य रेखा की ओर उत्थान है, के द्वारा ही निर्धारित किया जाएगा।
इसी प्रकार भाग्य रेखा की बनावट में कुछ विकार या दोष दिखायी दे यथा धुंधली होना, टूटी होना या फिर दूसरी रेखा द्वारा रोका जाना उस समय में व्यक्ति के भाग्य में रुकावट आती है। यदि भाग्य रेखा उस समय के बाद भी अपनी बनावट सुदृढ़ कर लेती है तथा अच्छी बारीक चमकती दिखती है तो उस विशेष समय के निकलने के बाद व्यक्ति उन्नति करता है तथा भाग्य फिर एक बार व्यक्ति का साथ देता है। यदि किसी विशेष रेखा द्वारा भाग्य रेखा को रोक लिया जाता है और आगे भाग्य रेखा अच्छी बनावट बना लेती है तो ज्यों ही उस ग्रह का समय समाप्त होता है, व्यक्ति का भाग्य फिर साथ देने लगता है। यहां पर यह स्पष्ट कर दें कि केवल मस्तिष्क रेखा ही एक ऐसी रेखा है जो भाग्य रेखा को रोकती है, क्योंकि भाग्य रेखा के रास्ते में यही रेखा आती है। मस्तिष्क रेखा मन को प्रकट करती है, वहीं यह रेखा मंगल ग्रह की जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति के बारे में बताती है। शनि व मंगल एक-दूसरे से शत्रुता रखते हैं। जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति में यदि मंगल से शनि एकतरफा इष्ट है तो भाग्य रेखा को मस्तिष्क रेखा अवश्य रोकेगी और यदि शनि अच्छी स्थिति में है तो मस्तिष्क रेखा द्वारा भाग्य रेखा नहीं रुकेगी। दोनों ही ग्रह अच्छे हैं तो अपने-अपने गोचर के समय में मस्तिष्क रेखा भाग्य रेखा को रोकेगी और मंगल का गोचर समाप्त होते ही भाग्य रेखा आगे बढ़ती हुई दिखाई देगी।
भाग्य रेखा से किस-किस व्यवसाय में व्यक्ति को सफलता मिलेगी, इसे भाग्य रेखा के उद्भव तथा बनावट के प्रकार से जाना जा सकता है।
1. भाग्य रेखा जब मणिबंध के पास या ऊपर से निकलती है तो व्यक्ति के पालनहार की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है तथा बचपन में किसी प्रकार की आर्थिक तंगी नहीं होती है। पालनहार का भाव यहां पर बच्चे का लालन पालन करने वाले से है। इसका एक उदाहरण प्रत्यक्ष रूप में जो मेरे सामने आया, उसको यहां संक्षिप्त में बताता हूं। मेरी गुजरात में नियुक्ति के दौरान मेरे एक मित्र जो मेडिकल व्यवसाय से जुड़े हैं, उन्होंने बताया कि कोई अनजान व्यक्ति एक नवजात बच्चे को जन्म होते ही अस्पताल के कचरे के डिब्बे में डाल गया है और मित्र की हार्दिक इच्छा थी कि उस नवजात बच्चे का पालन पोषण करे। एक वर्ष के बाद जब सब कुछ सामान्य हो गया, तब मेरे मित्र ने उस बच्चे की हस्त रेखाओं का निरीक्षण करने के लिए अनुरोध किया। उस बालक की मैं हस्त रेखाओं का निरीक्षण कर रहा था तो पाया कि उसकी भाग्य रेखा इतनी स्पष्ट थी कि मुझे परम पिता परमेश्वर की इस लिपि पर प्रगाढ़ विश्वास हो गया कि हस्त रेखाएं कभी भी गलत संकेत नहीं करती हैं हम ही यदि उसका सही ढंग से आकलन नहीं कर सके तो अलग है। उस बालक की भाग्य रेखा ठीक नीचे मणिबंध से ऊपर उठकर सीधी शनि पर्वत की ओर जा रही थी। इसके अलावा मेरे विभिन्न क्षेत्रों में हस्त परीक्षण के दौरान इस प्रकार की भाग्य रेखाएं देखने को मिली है।
2. भाग्य रेखा यदि जीवन रेखा को छूती हुई निकलती है तो व्यक्ति अपनी मेहनत से अपना स्वयं का भाग्य का निर्माता होता है तथा साथ में पारिवारिक संस्कार भी बनाए रखता है।
जन्मकालीन ग्रहों में शनि एवं शुक्र एक साथ होते हैं। यदि सूर्य रेखा भी जो मान सम्मान की प्रतीक मानी जाती है भी भाग्य रेखा से संबंध बनाती है तो इस रेखा वाले व्यक्ति को विलासिता की वस्तुओं, श्रृंगार की वस्तुओं, डेकोरेशन, सुगंधित वस्तुओं के व्यापार में लाभ होता है।
3. भाग्य रेखा यदि चन्द्र पर्वत से निकलती है तो व्यक्ति का भाग्योदय विवाह के बाद होता है। विपरीत लिंगी के सहयोग से जातक उन्नति करता है। ऐसे व्यक्ति को जन्म स्थान से बाहर रहकर जहां पर पानी के स्रोत हो, वहां अधिक लाभ होते देखा गया है। विदेश यात्रा भी प्राय: होती है।
4. भाग्य रेखा यदि मस्तिष्क रेखा के नीचे से निकलती है जहां पर मंगल का मैदान या उच्च मंगल का पर्वत है तो व्यक्ति अपने स्वयं के मस्तिष्क तथा बल-बूते पर उन्नति करता है तथा अपने जीवन में मनचाही सफलता प्राप्त करता है। यदि सूर्य रेखा भी मस्तिष्क रेखा के आसपास से निकलती है तो व्यक्ति जीवन में सम्मान से उन्नति करता है। इस प्रकार के भाग्य रेखा के धारक को मिनरल्स, जमीन से लगते कार्य, जमीन जायदाद का कार्य प्रापर्टी डीलर का व्यवसाय लाभदायक रहता है।
3. भाग्य रेखा यदि मस्तिष्क रेखा के नीचे तक अच्छी है तो व्यक्ति को प्रारंभिक काल में किसी प्रकार की परेशानी नहीं उठानी होती। यदि इस काल में भाग्य रेखा नहीं दिखती है तो उसे कड़ी मेहनत के साथ-साथ संघर्ष भी करना पड़ता है। यह समय 25 वर्ष का है। इस काल में जैसा भी व्यक्ति अपने को बनाता है, मेहनत करता है, अपने लोगों से संपर्क बनाता है, उसी प्रकार का लाभ उसे आगे आने वाले समय में मिलता है।
25 से 35 वर्ष का समय स्थिरता का है इस काल में यदि व्यक्ति बार-बार व्यवसाय में परिवर्तन करता है तो आने वाले 36 से 50 वर्ष के समय में उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। 25 से 35 वर्ष का समय यदि व्यक्ति अच्छी तरह धैर्य से निकाल दे तो अपने अंतिम पड़ाव में उसे किसी प्रकार की कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता।
4. भाग्य रेखा जब धुंधली होती है तो किस प्रकार की समस्या आएगी इसके लिए दूसरी रेखाओं का भी अध्ययन करना होता है।
स्वास्थ्य संबंधी कारण है तो हृदय रेखा तथा स्वास्थ्य रेखा का मिलान करें। यदि व्यवसाय में मन्दी आ रही है तो मस्तिष्क रेखा के साथ सूर्य रेखा को देखें। यदि पारिवारिक कारण है तो विवाह रेखा का निरीक्षण आवश्यक है।
अंगुष्ठ- अंगुष्ठ के दोनों पर्व के अध्ययन से भी व्यवसाय के बारे में जानकारी मिलती है। अंगुष्ठ का प्रथम पर्व के बीच का भाग जो बारीक रेखाओं द्वारा बना होता है वह यदि साफ सुथरा है तथा किसी प्रकार की आड़ी-टेड़ी रेखाओं द्वारा नहीं कटा हुआ है तो व्यक्ति का व्यवसाय बिना किसी रुकावट या मन्दी के चलता रहता है।
प्रथम पर्व तथा दूसरे पर्व को विभाजित करने वाली रेखा जो यव रेखा कहलाती है यदि इसकी बनावट अच्छी है तथा बीच में कटती नहीं है इसकी सहायक रेखा भी नहीं कटती है तो व्यवसाय में कोई रुकावट नहीं आती। परन्तु, इसका टूटना या धुंधला होना व्यवसाय या व्यापार में रुकावट की ओर संकेत करता है। दूसरे पर्व पर यदि बारीक रेखायें अंगुष्ठ पर अंगुष्ठ के नीचे से आती दिखती हैं तो व्यक्ति को आर्थिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता उसके जीवन में अन्त तक पैसे आने का योग बना रहता है।
इस प्रकार से आने वाले समय में होने वाली घटनाओं के शुभ या अशुभ के बारे में हमें भाग्य तथा अन्य मुख्य रेखाओं द्वारा संकेत मिलते हैं। व्यक्ति को चाहिए कि हस्त रेखा दिखाते समय कुशल हस्त रेखा शास्त्री से ही सलाह लें, ताकि आने वाले समय का सामना निर्भीकता से कर सकें।
विशेष- जीवन में व्यक्ति के हर क्षेत्र में उतार-चढ़ाव आता है। कभी वह सभी सुख सुविधाओं को भोगता है तो कभी उसे उनकी कमी रहती है। जन्म कुण्डली के 12 भाव होते हैं जो व्यक्ति के तन-मन, धन, पराक्रम, सुख संतान-शिक्षा, शत्रु, भार्या, आयु, भाग्य, मान सम्मान, व्यवसाय राज योग, हर कार्य से लाभ तथा मोक्ष के बारे में बताते हैं। परम् पिता परमेश्वर ने मनुष्य को सभी क्षेत्रों में पूर्णता प्रदान नहीं की है, किसी न किसी क्षेत्र में कमी रखी है। इसे हम दूसरी तरह से भी समझ सकते हैं कि कुण्डली या जन्मकालीन ग्रह 12 हैं और इनकी स्थिति सभी भावों पर एक जैसी नहीं हो सकती है।
गुरु जो मान, सम्मान, शिक्षा तथा संतान का प्रतीक है तो शनि व्यक्ति को अपने क्रियाकलाप का उचित पुरस्कार तथा दण्ड देता है। सूर्य, व्यक्ति को प्रतिष्ठा दिलवाता है तो मंगल जोश-खरोश का प्रतीक है। शुक्र विलासिता का द्योतक है तो बुध, वाणी चातुर्य का और चन्द्रमा मन का। हर भाव से संबंधित लाभ व्यक्ति को नहीं मिलता।
अत: परम पिता परमेश्वर के इस कार्य को उसके ही ऊपर छोड़कर व्यक्ति को कर्म करते रहना चाहिए। फल अवश्य मिलेगा।
हर कर्म का फल निश्चित है। हस्त रेखाएं तो शुभ और अशुभ के प्रति सचेत करती हैं। उस समय का उपयोग आप किस प्रकार करते हैं, यह आप पर निर्भर है।
(त्रिलोक सैनी-विभूति फीचर्स)