Friday, January 24, 2025

पुलिस हिरासत में हुई व्यापारी की मौत मामले में दो अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज

सोनभद्र (उप्र)। पूर्व अनुविभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) राजेश कुमार सिंह और तहसीलदार बृजेश कुमार वर्मा के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है। सोनभद्र की रॉबर्ट्सगंज कोतवाली पुलिस ने सदर तहसीलदार सुनील कुमार की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की है। इसमें कहा गया है कि सोनभद्र के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा व्यापारी की मौत के मामले में मजिस्ट्रेट जांच के आदेश में तत्कालीन एसडीएम व तहसीलदार को जिम्मेदार पाया गया। सोनभद्र के जिलाधिकारी चंद्र विजय सिंह ने कहा, मजिस्ट्रियल जांच ने न केवल कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर किया है, बल्कि इस तथ्य को भी उजागर किया है कि व्यापारी के शव का पोस्टमॉर्टम किए बिना ही अंतिम संस्कार कर दिया गया था।

उन्होंने बताया कि मिजार्पुर संभागीय आयुक्त के अधीन एक उच्च स्तरीय समिति भी मामले की जांच कर रही है, और इसकी रिपोर्ट मजिस्ट्रियल जांच के परिणाम, प्राथमिकी दर्ज करने और दोनों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई सहित सभी घटनाक्रमों जल्द राज्य सरकार को भेजी जाएगी।

प्राथमिकी में वर्णित विवरण के अनुसार सुधाकर दुबे की सोनभद्र जिले के रॉबर्ट्सगंज बस्ती में धर्मशाला चौराहे के पास इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की दुकान थी।

दूबे ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से 10 लाख रुपये से अधिक का कर्ज लिया था। लेकिन कर्ज न लौटाने पर उसके खिलाफ वसूली चालान जारी किया गया था।

इस संबंध में तत्कालीन सदर तहसीलदार बृजेश कुमार वर्मा ने पिछले साल 12 मई को दुबे को गिरफ्तार कर राजस्व विभाग के हवालात में बंद कर दिया.

दुबे को 19 मई तक हवालात में रखा गया। इसी दौरान दुबे की तबीयत बिगड़ गई।

इसके बाद वर्मा ने आवश्यक कागजी कार्रवाई पूरी किए बिना दुबे को अस्पताल ले जाने के लिए रिहा कर दिया।

दुबे को शुरू में रॉबर्ट्सगंज के लोधी इलाके में अस्पताल ले जाया गया और बाद में वाराणसी के बीएचयू अस्पताल में रेफर कर दिया गया। हालांकि उनकी रास्ते में ही मौत हो गई।

एसडीएम और तहसीलदार ने पोस्टमॉर्टम कराने के बजाय दुबे के शव को दाह संस्कार के लिए उसके परिवार को सौंप दिया। मामला जिलाधिकारी या किसी अन्य वरिष्ठ अधिकारी के संज्ञान में नहीं लाया गया।

दुबे के बेटे नीरज और उनके वकील विकास शाक्य ने जिला मजिस्ट्रेट सोनभद्र के पास शिकायत दर्ज कराई। जिन्होंने एडीएम भानु प्रताप यादव को मामले की मजिस्ट्रेटी जांच कराने का जिम्मा सौंपा।

इस जांच के दौरान दुबे के परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाए कि उन्हें एक लॉक-अप में रखा गया था जो असहनीय रूप से गर्म था। साथ ही उन्हें पीने के लिए गर्म पानी दिया गया, इसके बाद वह बीमार पड़ गए।

उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने दुबे के परिवार को उन्हें घर का बना खाना और पीने का पानी देने की भी अनुमति नहीं दी।

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