Tuesday, November 5, 2024

चौधरी चरण सिंह जयंती: स्वप्न ही था एक किसान नेता का प्रधानमंत्री बनना !

वह प्रधानमंत्री होने के बावजूद लखनऊ रेल से जाया करते थे। अगर घर में कोई अनावश्यक बल्ब जला हुआ है तो वह डांटते थे कि इसे तुरंत बंद करो। वास्तव में चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति के ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जिन्होंने देश से कम से कम लिया और देश को अधिकतम दिया।
चौधरी चरण सिंह का जन्म सन 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर गांव में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने  सन 1923 में बीएससी  की  और आगरा विश्वविद्यालय से सन 1925 में एमएससी की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद एलएलबी की और  गाजियाबाद से वकालत पेशे की शुरुआत की। बाद में वे मेरठ आ गये और कांग्रेस में शामिल होकर अपने राजनीतिक सफर को शुरू किया।बेहद सादे लिबास में रहते थे। धोती कुर्ता और सिर पर टोपी,यही उनका पहनावा था। एंबेसडर कार में चला करते थे और जहाज़ पर उडऩे के ख़िलाफ़ रहते थे ।
सन 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए वह पहली बार चुने गए ।इसके बाद सन 1946, सन 1952, सन 1962 एवं सन 1967 में उन्होंने विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे सन 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना इत्यादि विभिन्न विभागों में कार्य किया।
जून सन 1951 में उन्हें राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया और न्याय तथा सूचना विभाग का प्रभार दिया गया। बाद में सन 1952 में वे डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री बने। अप्रैल सन 1959 में जब उन्होंने पद से इस्तीफा दिया, उस समय उन्होंने राजस्व एवं परिवहन विभाग का प्रभार संभाला हुआ था।
मुख्यमंत्री सी.बी. गुप्ता के शासनकाल में वे गृह एवं कृषि मंत्री  थे। श्रीमती सुचेता कृपलानी की सरकार में वे कृषि एवं वन मंत्री  रहे। उन्होंने सन 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया एवं सन 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का प्रभार संभाल लिया।
कांग्रेस विभाजन के बाद फरवरी सन 1970 में वे कांग्रेस पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि बाद में राज्य में 2 अक्टूबर सन 1970 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था।
श्री चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश की राजनीतिक सेवा की। उनकी ख्याति एक  कड़क नेता के रूप में हो गई थी । प्रशासन में अक्षमता, भाई – भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार को वे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे।
उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उनके द्वारा की गई पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन एवं उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था। मुख्यमंत्री के रूप में जोत अधिनियम, 1960 को लाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह अधिनियम खेती की जमीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था ,ताकि राज्य भर में इसे एक समान बनाया जा सके।
देश में कुछ-ही राजनेता ऐसे हुए हैं जिन्होंने लोगों के बीच रहकर सरलता से कार्य करते हुए इतनी लोकप्रियता हासिल की । एक समर्पित लोक कार्यकर्ता एवं सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखने वाले चौधरी चरण सिंह को लाखों किसानों के बीच रहकर प्राप्त आत्मविश्वास से काफी बल मिला।
चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढऩे और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें लिखी जिनमें ‘ज़मींदारी उन्मूलन, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीजऩ ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेद् आदि प्रमुख हैं।
उनका  रौबीला व्यक्तित्व  था, जिसके सामने लोगों की बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती थी. उनके चेहरे पर हमेशा परिपक्वता होती थी। वे हमेशा संजीदा बातचीत करते थे और बहुत कम मुस्कुराते थे. उन्हें कभी ठहाके मारकर हंसते हुए शायद ही किसी ने देखा हो।वह उसूलों के पाबंद थे और बहुत साफ़-सुथरी राजनीति के पक्षधर थे।
राष्ट्रीय आंदोलनो के दौरान वह महात्मा गाँधी और कांग्रेस की मिट्टी में तपे थे।सन1937 से लेकर सन 1977 तक वह छपरौली – बागपत क्षेत्र से लगातार विधायक रहे. प्रधानमंत्री बनने के बावजूद उनके साथ किसी तरह का कोई लाव – लश्कर नहीं चलता था।
कोर्टपीस खेलने के शौकीन
चौधरी चरण सिंह से लोगों का रिश्ता दो तरह का हो सकता था – या तो आप उनसे नफऱत कर सकते थे या असीम प्यार. बदले में आपको भी या तो बेहद ग़ुस्सा मिलता था या अगाध स्नेह. उनका व्यवहार कांच की तरह पारदर्शी और ठेठ देहाती बुज़ुर्गों जैसा हुआ करता था।
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि वह संत कबीर के बड़े अनुयायी थे।कबीर के कितने ही दोहे उन्हें याद थे।वे  ‘एचएमटी’ घड़ी बाँधते थे और पूर्णत: शाकाहारी थे।तंबाकू और सिगरेट  का तो  सवाल ही नहीं था।
स्व. चौधरी चरण सिंह ने आगरा कॉलेज आगरा से एलएलबी किया था। वे आगरा कॉलेज के सप्रू हॉस्टल के रूम नंबर 27 में रहते थे।  चौधरी चरण सिंह का रसोईया वाल्मीकि समाज से था। उनके साथ शिक्षारत विद्यार्थियों ने इस बात का विरोध किया, लेकिन चौधरी चरण सिंह उस रसोइये के समर्थन में रहे, उन्होंने कहा कोई उंचा नीचा नहीं होता । चौधरी चरण सिंह की इस सोच ने सबका दिल जीत लिया।
वेआगरा के फतेहपुर सीकरी विधानसभा और किरावली ब्लॉक के गांव सरसा में मुख्यमंत्री बनने के बाद आये थे। गांव में आने का उद्देश्य महज औचक निरीक्षण करना था। चौधरी चरण सिंह के साथ जिलाधिकारी भी थे। जब गांव में चौधरी चरण सिंह और जिलाधिकारी एक स्थान पर कुर्सी पर बैठे, तो वहां कुछ बुजुर्ग किसान उन्हें खड़े हुये दिखाई दिए । इस पर चौधरी चरण सिंह ने जिलाधिकारी को किसान के लिए कुर्सी छोडने को कहा। उन्होंने कहा कि इन किसानों को कुर्सी दो, क्योंकि अधिकारी जनता का सेवक होता है, मालिक नही।
उनका यही गुण उन्हें साधारण किसान से प्रधानमंत्री की कुर्सी तक लेकर गया। किसान नेता चौधरी चरण सिंह की यादे हमेशा जिंदा रहेगी क्योंकि उनकी यह सोच कि देश की तरक्की का रास्ता खेतो और खलियानों से होकर जाता है,आज भी सार्थक है ।
-डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

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