जंगल में एक पुराना आम का पेड़ था। उस पर कई पक्षी रहते थे। उसी पेड़ पर एक छोटी-सी प्यारी सी रंग बिरंगी चिडिय़ा रहती थी। उसका नाम रंगीली था। वह सीधी साधी और नेक चिडिय़ा थी। मुंह अंधेरे उठ जाती।
अपने दैनिक कामों से निपट कर थोड़ा समय ईश्वर गुणगान में लगाती और फिर दाने पानी की खोज में निकल पड़ती। शाम को लौटती, बच्चों को दाना पानी देती, उन्हें सुलाती और स्वयं सो जाती। उसके पड़ोस वाले तने पर एक कौवा अपने परिवार के साथ रहता था। कौवा चालाक आलसी और कामचोर था। हर समय बच्चों को पीटता और पत्नी के साथ झगड़ा करता रहता था।
एक दिन रंगीली के मन में एक विचार आया कि पड़ोसी होने के नाते उसने कौवे से कहा- कागा भैय्या क्यों न हम दोनों मिलकर धान की फसल उगायें। साल भर का अनाज हो जायेगा।
यह तो बहुत अच्छा विचार है बहन। सामने जमीन का खाली टुकड़ा पड़ा है। बरसात के समय उसमें काफी पानी जमा हो जाता है। खूब लहलहाती फसल होगी।
कौवे ने कहा। तो फिर ठीक है। बरसात सिर पर है। कल से ही जमीन पर काम शुरू कर देते हैं। चिडिय़ा ने कहा। कौवे ने भी हामी भर दी।
अगले दिन घर का काम काज निपटा कर रंगीली कौवे से बोली- चलो कागा भैया, खेत में खुदाई करते हैं?
कौवा बोला- हां तुम चलो, मैं पीछे आता हूं। छोटे की तबियत खराब है, दवाई देकर पहुंचता हूं।
रंगीली फावड़ा खुरपी लेकर अकेली चली गई। सारा दिन मेहनत करके भूमि को समतल बनाया और झाड़ झंकाड़ साफ किये। कौवा नहीं आया।
दूसरे दिन चिडिय़ा ने कौवे को फिर पुकारा- कागा भैय्या, चलो जमीन की खुदाई करनी है।
कौवे ने कहा- हां तुम पहुंचो, बस मैं आ ही रहा हूं। रंगीली चुपचाप चली गई। सारा दिन जी तोड़ मेहनत करती रही परंतु कौवा नहीं आया।
खेत में जाने से पहले चिडिय़ा कौवे को बुलाती परंतु वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल देता था।
रंगीली अपने बच्चों के लिये दाने-पानी की व्यवस्था भी करती और खेत का काम भी निपटाती थी।
बारिश शुरू हुई। रंगीली ने पहले ही सब कुछ तैयार कर रखा था। खेत में धान के पौधे रोप दिये। धान की पौध उसने अपने पड़ौसी किसान से दो किलो धान देने के वायदे पर उधार ली थी।
रंगीली की मेहनत रंग लाई। धान की फसल कुछ दिन में लहलहा उठी। झूलती हुई हरी-मोटी बालियां बता रही थी जोरदार फसल होगी।
फसल पक गई। कटाई का समय आया। रंगीली कौवे के पास गई, बोली कागा भैया फसल तैयार है। आओ चलो कटाई कर लेते हैं।
कौवे ने कराहते हुए बहाना बनाया- अरी बहना मैं तो दो दिन से उठ भी नहीं पाया। ज्वर से पीडि़त हूं वरना मैं अवश्य ही चलता।
बेचारी चिडिय़ा ने अकेले ही फसल काटी। धान की गहाई करके पुआल और धान अलग किया। सब कुछ कर लेने के बाद रंगीली कौवे के पास गई, बोली- कागा भैया आओ, अपना अपना हिस्सा बांट लेते हैं।
हां, हां, मैं तैयार हूं। चलो। कौवा तपाक से बोला और साथ चल पड़ा।
खेत में पहुंचकर कौवे ने देखा, चिडिय़ा ने बड़ी मेहनत की है। एक ओर धान का ढेर लगा था, दूसरी ओर पुआल का।
कौवे ने मन में सोचा चिडिय़ा तो बड़ी मूर्ख है। बिना एक कुछ किये ही मुझे हिस्सेदार बना रही है। उसने रंगीली से कहा- बहन तुमने खूब मेहनत की है, इसलिये तुम एक चौथाई धान रख लो। साथ ही साथ पुआल का सारा ढेर भी तुम्हारा हुआ।
कौवे के सम्मुख चिडिय़ा क्या बोलती। उसने बस इतना ही कहा कागा भैया, जैसा तुम उचित समझो, वैसा ही कर लो।
चिडिय़ा एक चौथाई धान और पुआल का ढेर लेकर सन्तुष्ट हो गई। पुआल का ढेर उसने आम के पेड़ के नीचे लगा दिया। अपने हिस्से के एक चौथाई धान को भी सुरक्षित रख दिया।
कौवा अपने परिवार के साथ धान के ढेर पर बैठा खुशी से फूला नहीं समा रहा था। कांव कांव करके जंगल सिर पर उठा रखा था।
तभी आसमान में बादल गरजने लगे। रह रह कर बिजली कौंध रही थी। तेज हवा चलने लगी। बादल गरजा और बारिश शुरू हो गयी। इसके साथ ही मोटे मोटे ओले पडऩे शुरू हो गये। ओलों की मार से पेड़ से पत्ते झडऩे लगे और डालियां नंगी हो गई।
पक्षी अपने बच्चों को लेकर उधर उधर शरण ढूंढने लगे। रंगीली तुरन्त अपने बच्चों को लेकर पुआल के ढेर में घुस गई। सभी पक्षियों को उसने प्राण रक्षा के लिये पुआल में बुला लिया। कौवा सिर छिपाने के लिये इधर उधर भाग रहा था। धान का ढेर भी पानी के साथ साथ हो लिया था।
साथी पक्षी एक स्वर में चिल्लाये, रंगीली, कौवे को अपने पास शरण मत देना। यह लालची और बेईमान है।
कौवा अपने और बच्चों के प्राण संकट में देखकर चिल्लाया-बहन रंगीली, हमारे प्राणों की रक्षा करो। मैंने तुम्हारे साथ छल किया हैं मैं पापी हूं। मुझे क्षमा कर दो बहन। तुम्हारा एहसान मैं जीवन भर नहीं भूलूंगा।
रंगीली तो दयालु थी। उसने कौवे और बच्चों को पुआल में शरण दे दी।
कौवा रंगीली से आंख नहीं मिला पा रहा था।
– परशुराम संबल