नई दिल्ली। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने राज्य विधानमंडलों में बैठकों की संख्या में आ रही कमी को चिंता का विषय बताते हुए कहा कि जब विधान सभा सत्र की अवधि कम कर दी जाती है, तो नवनिर्वाचित सदस्य महत्वपूर्ण विधायी अनुभव से वंचित हो जाते हैं। जबकि विधानमंडलों में रचनात्मक बहस से लोगों में सकारात्मक संदेश जाता है। इसलिए सभी सदस्यों को सदन की कार्यवाही में व्यवधान और अनुशासनहीनता की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करना चाहिए।
बिरला ने बुधवार को संसद भवन परिसर में हिमाचल प्रदेश विधान सभा के नवनिर्वाचित सदस्यों के लिए संसदीय लोकतंत्र शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान (प्राइड) द्वारा आयोजित प्रबोधन कार्यक्रम का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में हिमाचल प्रदेश के प्राकृतिक सौंदर्य और लोगों के आतिथ्य भाव की सराहना करते हुए कहा कि यह राज्य भारत की समृद्ध संस्कृति और विविधता का गौरवशाली प्रतीक है। उन्होंने विधायकों को संबोधित करते हुए कहा कि जनप्रतिनिधियों को लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निष्ठापूर्वक प्रयास करने चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोगों की जरूरतें पूरी हों।
उन्होंने यह भी कहा कि लोगों ने अपने प्रतिनिधियों को बहुत सारी जिम्मेदारियां दी हैं और इसलिए उन्हें पूर्ण समर्पण भाव के साथ जन कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए। विधान सभा एक ऐसा महत्वपूर्ण मंच है जिसके माध्यम से समाज के सबसे कमजोर वर्गों की भावनाओं को मुखरित किया जाता है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि जनप्रतिनिधि लोगों की समस्याओं का समाधान करें। उन्होंने कहा कि लोगों की प्रतिक्रिया, विशेषज्ञों के ²ष्टिकोण, व्यापक वाद-विवाद और विधायकों के अपने अनुभव से ही लोक कल्याण के लिए उच्च गुणवत्ता वाले कानून बनाए जा सकते हैं।
इस बात का उल्लेख करते हुए कि लोकतंत्र की जननी के रूप में, भारत में लोकतांत्रिक निर्णय लेने की एक लंबी परंपरा रही है, बिरला ने कहा कि स्वतंत्रता के 75 वर्षों में भारत में लोकतान्त्रिक मूल्यों के अनुपालन के फलस्वरूप बड़े पैमाने पर और व्यापक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन आया है। उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र कई लोगों की धारणाओं को गलत साबित करते हुए समय की कसौटी पर खरा उतरा है।
नवनिर्वाचित सदस्यों से विधायी कार्यवाही में भाग लेने का आग्रह करते हुए, बिरला ने कहा कि सदस्यों को यथासंभव अधिकाधिक अनुभव प्राप्त करना चाहिए और विधायी कार्यवाही और बहस में भाग लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि वाद-विवाद और चर्चाओं के सावधानीपूर्वक विश्लेषण और शोध से विधायी अनुभव बढ़ता है।
उन्होंने हिमाचल विधान सभा को पहली पूरी तरह से डिजिटल और पेपरलेस विधानसभा बनने पर सराहना करते हुए इस बात पर भी जोर दिया कि विधान सभा के भीतर और बाहर विधायकों का आचरण निंदा से परे होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना प्रत्येक निर्वाचित जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारी है कि विधायी निकाय हमेशा तथ्यात्मक जानकारी के आधार पर बहस करें। जनप्रतिनिधियों को निराधार तथ्यहीन आरोपों से बचना चाहिए।
सदन की कार्यवाही में सुनियोजित व्यवधान को गलत बताते हुए बिरला ने कहा कि इस तरह के आचरण और अनुशासनहीनता को सभी सदस्यों को हतोत्साहित करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा अमर्यादित आचरण से सदन की गरिमा कम होती है और इससे शासन संस्थानों में जनता का विश्वास भी कम होता है।