लगभग एक सौ फुट ऊंचा धार्मिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक देवालय जिसका द्वार पश्चिमाभिमुख है और जहां तीन स्वरूपों में भगवान भुवन भास्कर सूर्य देव की पूजा होती है, उक्त सूर्य मंदिर ‘देव’ नामक स्थान में विराजमान है। नवरंग सिंह का नवरंगा अब औरंगाबाद कहलाता है जो कि बिहार का एक प्रमुख जनपद है। इसी जनपद का एक थाना प्रखण्ड व अंचल है ‘देव’ जहां उक्त सूर्य मंदिर अवस्थित है।
देव सूर्य मंदिर अपनी शिल्पकला एवं मनोरम छटा व ऊंचाई आदि के कारण विख्यात है। यहां सूर्यषष्ठी व्रत यानि छठ पूजा के अवसर पर श्रद्धालु भक्तों व छठ व्रतियों की भारी भीड़ उमड़ती है। सर्वाधिक भीड़ रहती है कार्तिक शुक्ल षष्ठी (छठ पूजा) के अवसर पर, परनतु चैत्र शुक्ल षष्ठी (छठ) पर भी अच्छी भीड़ रहती है। हजारों की संख्या में लोग पंचमी, षष्ठी व सप्तमी को यहां पूजा हेतु जमे रहते हैं। सूर्यदेव के इस मन्दिर के सामने ही है सूर्य का ‘छठ तालाब’।
मंदिर के गर्भगृह में भगवान सूर्य- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के रूप में विद्यमान हैं। यहां कहते हैं-
‘आपही पालनहार हैं, क्षमा करहूं क्लेश। तीन रूप रवि आपका ब्रह्मा, विष्णु, महेश।’
गर्भगृह के मुख्य द्वार के बांयीं ओर भगवान सूर्य की प्रतिमा और दांयीं ओर भगवान शंकर की गोदी में बैठी मां पार्वती की प्रतिमा है। ऐसी प्रतिमा को सूर्य के अन्य मंदिरों में नहीं देखा गया है। गर्भगृह में रथ पर बैठे भगवान सूर्य की अद्भुत प्रतिमा है।
यहां की मान्यता है कि सतयुग में प्रयाग के राजा ऐल को कोढ़ (कुष्ठ) हो गया था। उन्हें स्वप्न में एक दृश्य दिखाई दिया कि मगध में एक गहरे कीचड़ युक्त जल का कुण्ड है, जिसमें मैं सूर्यदेव स्वयं विराजमान हूं, वहां जाकर उस कुण्ड में स्नान करो व मुझे वहां से निकालकर पूजन करो, स्थापित करो, तुम्हारा कोढ़ नष्ट हो जाएगा। राजा ऐल अपनी रानी देवयानि के साथ ढूंढ़ते हुए वहां पहुंचा।
वहां कीचडय़ुक्त जल में नहाते हुए उसे सूर्य प्रतिमा मिल गई, तत्पश्चात तीन विग्रह ब्रह्मा, विष्णु, महेश की भी मिली, वहीं उसे सूर्यदेव से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने बताया कि ये तीनों विग्रह मेरे ही तीन स्वरूप हैं। कुछ ही दिन की उपासना व स्नान से उसका कोढ़ जाता रहा। कुण्ड को उसने तालाब का स्वरूप प्रदान किया और बगल में विशाल सूर्य मंदिर की स्थापना कर मूर्तियों को प्रतिष्ठित किया। रानी देवयानि के नाम पर स्थान का नामकरण किया ‘देव’। लोग अब समझते हैं कि भगवान सूर्यदेव के कारण यहां का नाम ‘देव’ है। रानी ने वहां से कुछ दूर एक कुण्ड का निर्माण कर वहां शिव-मंदिर बनवाया था, जिसे देवकुण्ड कहा जाता है। समय बीतने के साथ मंदिर का पुनरुद्धार व जीर्णाेद्धार होता रहा। वर्तमान मंदिर उमगा (मदनपुर) के राजा द्वारा निर्मित है। उमगा नरेश भैरेवेन्द्र सिंह ने देव, देवकुण्ड एवं उमगा में विशाल मंदिर का निर्माण कराया। उमगा का मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है। देवकुण्ड में शिवरात्रि का मानव व पशु मेला एक साथ लगता है। यहां शिव पूजन के अतिरिक्त दूर-दूर से आकर लोग घरेलू पशुओं को खरीदते हैं।
भारत में स्थित सभी सूर्य मंदिरों का द्वार पूरब दिशा में है, परंतु देव सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिमाभिमुख है। वास्तव में मुगल औरंगजेब यहां कुछ समय टिका और नवरंगा का नाम ‘औरंगाबाद’ किया। उसने देव सूर्य मंदिर पर हजारों-हजार की भीड़ उमड़ते देख इसे अपने शासन और मुस्लिम शासन के लिए भारी खतरा माना। उसने इस मंदिर को नेस्तानाबूद करने के लिए हमला किया, गोले चलवाए जिसके निशान आज भी मंदिर की दीवार पर हैं। पर हिन्दुओं के भारी हुजूम के कारण वह उसे गिराने में असमर्थ रहा, पर वह उसे नष्ट करके ही जाना चाहता था, लेकिन हिन्दुओं ने कहा इसे हम सबको मारने के बाद ही आप गिरा पाएंगे। तब औरंगजेब ने कहा कि उक्त मंदिर तुम्हारे भगवान का है और तुम्हें उनकी ताकत का विश्वास है तो हमने घेराबंदी की है, तुम अपने भगवान से कहो कि मंदिर का मुख्य द्वार पूरब से पश्चिम हो जाए। सुबह ही औरंगजेब को खबर मिली कि पूजा उपासना करने वालों की भारी भीड़ जमी है, मौत का किसी को खौफ नहीं दिखता और ताज्जुब की बात है कि मंदिर का द्वार पूरब की ओर बंद होकर पश्चिम की ओर खुल गया है। बादशाह ने इसे देखा और घेराबंदी खत्म कर चला गया। तब से द्वार पश्चिम ही है। उक्त मंदिर औरंगाबाद शहर से 18 किलोमीटर दूर है। शेरशाह सूरी पथ (अशोक राजमार्ग यानि जी.टी. रोड) पर उमगा (मदनपुर) से घटराईन मोड़ से उत्तर देव जाना पड़ता है। गया से गोह के बाद देव आता है।
स्वामी गोपाल आनन्द बाबा – विनायक फीचर्स