Monday, December 23, 2024

कहो तो कह दूं /वक्त का फेर है, जो छापा डालते थे उन पर छापा डल गया…

कहते  हैं ना वक्त बड़ा बेरहम होता है, कब किसको कहां अलसेट दे दे कोई नहीं जानता, कल तक जो अर्श पर था वो फर्श पर पहुंच जाएं और फर्श  वाला अर्श  पर। वक्त की फितरत ही कुछ ऐसी होती है जिसके बारे में भगवान भी कुछ नहीं बता सकता ,अब देखो ना सेंट्रल जीएसटी के जो बड़े-बड़े अफसर बड़े-बड़े व्यापारियों के छापा मारने जाते थे

सरकारी गाड़ी सरकारी अधिकार, जिन अफसरों के सामने करोड़पति, अरबपति व्यापारी गिड़गिड़ाया करते  थे वे अब सीबीआई के अफसरों के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं लेकिन सीबीआई के अफसर भी क्या करते  उनके करम भी तो ऐसे थे, जिस चाहे को जब चाहे गैंग के रूप में घेर लिया और देने लगे  बत्ती कि इतना पैसा लाओ वरना क्या से क्या हो जाएगा ये तुम नहीं जानते। कोई सोच सकता है कि रिश्वत के रूप में एक करोड़ की मांग हो सकती है दो, चार, पांच लाख की मांग तो अपन ने भी सुनी थी, अफसर किसी काम को सेट करने के बदले दो चार पांच लाख मांग लेता था लेकिन अफसरों की हिम्मत तो देखो सीधे-सीधे एक करोड़ की मांग।

व्यापारी हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाता रहा साहब  कुछ कम कर लो ,एक तरफ फैक्टरी घाटे में है ऊपर से आप एक करोड़ मांग रहे हो।  बड़ी मुश्किल में मामला सेट हुआ पैंतीस लाख में  व्यापारी पच्चीस लाख पहले ही दे चुका था दस बैलेंस थे लेकिन मोलभाव करके ये राशि सात लाख पर सैटिल हुई  और व्यापारी ने इन अफसरों की गैंग को सात लाख पहुंचा दिए,लेकिन हिम्मत की दाद देना पड़ेगी इस रिश्वतखोर गैंग की ,ऑफिस के भीतर पूरी गैंग नोट गिनने में लगी थी  क्योंकि व्यापारी को साफ साफ हिदायत दे दी गई थी कि   कटे फटे नोट स्वीकार नहीं किए जाएंगे ।

नोटों की गड्डियां अलग-अलग कर रहे थे कि आ गई सीबीआई की टीम। टीम को देखते ही सारे अफसरों की हो गई  सिट्टी पिट्टी गोल, एक झटके में सारा गुरूर उतर गया और सीबीआई वाले हाथ पकड़कर उन्हें अपने दफ्तर ले गए, इस बीच जब तलाशी ली गई तो किसी इंस्पेक्टर के पास चार लाख, तो किसी के पास ढाई लाख ,तो किसी के पास चौदह लाख नगद मिले।

गैंग के लीडर कांबले साहेब के घर को देखकर तो सीबीआई टीम की आंखें भी चौंधिया गई। दस साल पहले भाई साहब ने नौकरी ज्वाइन की और इस दौरान उन्होंने को अकूत संपत्ति  कमाई वो अब ठिकाने पर लगने वाली है अपना मानना तो ये है भले ही सरकारें भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की बात करें लेकिन किसी माई के लाल में ताकत नहीं जो भ्रष्टाचार खत्म कर सकें।

अब पूरी गैंग पोल खोलने में लगी है कि किस किसको कितना पैसा दिया जाता था किसके हिस्से में कितनी राशि आती थी, सीबीआई उन तमाम अफसरों की भी कुंडली खंगालने में लगी है जो वहां एयर कंडीशंड ऑफिस में बैठकर व्यापारियों की ऐसी तैसी करते थे। इसलिए कहते हैं थोड़ा खाओ ज्यादा खाओगे तो यही हाल होगा ,लेकिन दिक्कत तो ये है कि एक बार रिश्वत का खून जुबान में लग जाता है तो उसका स्वाद भूले नहीं भूलता। जीएसटी के बड़े बड़े अफसरों की पूरी खाना तलाशी सीबीआई के अफसर कर रहे हैंऔर इसके चक्कर में गुलजार रहने वाले सेंट्रल जीएसटी के दफ्तर में सीसुई पटक सन्नाटा पसरा हुआ है।

भरोसा तो कब का उठ चुका
देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक मीटिंग में कहा की जनता का भरोसा नेताओं पर से उठ गया है,इसके साथ-साथ उन्होंने आईएएस अफसरों को भी एक नसीहत दे डाली कि अफसर होने का अहंकार मत पालो। रक्षा मंत्री जी को ये बात बहुत लेट समझ में आई या पता लगी , नेताओं पर से तो भरोसा जनता का कब से उठ चुका है और क्यों ना उठे,वायदे करना और फिर उनको भुला देना, जनता को अपना नौकर समझना ये तो नेताओं की फितरत हैऔर उस पर करेला ऊपर नीम चढ़ा रही सही कसर ये अफसर पूरी कर देते हैं उनकी निगाह में तो वैसे भी आम जनता कीड़े मकोड़ों की तरह होती है कहने को तो दोनों ही जनता के सेवक हैं।

लेकिन वास्तव में जनता इन दोनों की सेवक है,और ये बात ये दोनों अच्छी तरह से जानते हैं ,दोनों की मिली-जुली नूरा कुश्ती जनता को दिखाने के लिए होती है लेकिन अंदर ही अंदर दोनों मिले हुए होते हैं। राजनाथ सिंह जी ने नेताओं को नसीहत दी है अपना विश्वास फिर से हासिल करो लेकिन सवाल वही है जो भरोसा एक बार टूट गया हो उसे हासिल करना कठिन ही नहीं बल्कि नामुमकिन होता है, नेता कितना ही झकाझक सफेद कुर्ता पजामा पहन ले लेकिन उसके अंदर का कालापन छुपाए नहीं छुपता, फिर भी यदि इतने बड़े नेता ये बात कह रहे हैं तो उन्हें भी इस बात का अंदाजा होगा कि जनता के सामने नेताओं की क्या हैसियत रह गई है और उन पर जनता का कितना विश्वास है, काश ये तमाम नेता किसी भी पार्टी के हों,यदि सिंह साहब की बात पर थोड़ा ध्यान लगा लें तो हो सकता है सौ में से दस परसेंट भरोसा जनता का वे जीत सकें परंतु इसकी उम्मीद कम ही दिखती है।

गिरगिट हो गए मगरमच्छ
एक खबर आई है कि नेपाल के चितवन पार्क में जो मगरमच्छ हैं वे अपना रंग बदल रहे हैं। भूरे रंग के बजाय नारंगी रंग के हो रहे हैं ये मगरमच्छ। सरकार भारी परेशान है कि इन मगरमच्छों को क्या हो गया अभी तक तो यह माना जाता था गिरगिट समय के साथ अपना रंग बदल देता है लेकिन अब मगरमच्छ अपना रंग बदलने लगे हैं वैसे मगरमच्छ के बनावटी पन को हर कोई जानता है।

इसलिए कहावत भी है मगरमच्छ के आंसू मत बहाओ लेकिन अब ये मगरमच्छ उससे भी बढ़कर अपना रंग बदलने में एक्सपर्ट हो गए हैं। वैज्ञानिक लोग पता लगाने में लगे हैं कि मगरमच्छ अपना कलर चेंज क्यों कर रहे हैं। अपनी वैज्ञानिकों को एक ही सलाह है कि काहे को इतनी माथापच्ची कर रहे हो ये भर पता लगा लो कि ये मगरमच्छ नेताओं के सानिध्य में तो नहीं है क्योंकि अगर नेताओं की संगत में रहे होंगे तो उन्हें रंग बदलने की प्रक्रिया समझ में आ गई होगी। कब कौन सा नेता कहां चला जाए, सुबह जिसको पानी पी पीकर कोसता हो शाम को उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ता हुआ मिल जाए,कहा तो यह भी जाता है कि गिरगिट को भी रंग बदलने में थोड़ा वक्त लगता है लेकिन नेता एक  मिनट भी नहीं लगाता इस पार्टी से उस पार्टी में कूदने में।

अपने को तो पूरा भरोसा है कि ये जो मगरमच्छ हैं जरूर नेताओं के संपर्क में आए होंगे और उन्होंने सोचा होगा जब इंसान अपना रंग बदल देता है तो हम तो ठहरे जानवर ,हमें रंग बदलने से  कौन रोक सकता है सो वे नारंगी हो गए। वैसे भी भूरा रंग कोई अच्छा नहीं माना जाता  कोई चमक नहीं  होती है इस रंग में लेकिन नारंगी रंग की चमक  दूर से दिख जाती है। कल के दिन हो सकता है ये मगरमच्छ रेड, येलो ,ब्लू ,ब्लैक,परपल  जैसे रंग भी अख्तियार करने लगें।
(लेखक- चैतन्य भट्ट)

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