आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति हमारे देश की प्राचीनतम पद्धति है। यह पद्धति पूर्णरूप से अन्य पद्धतियों के अनुसार ही वैज्ञानिक है। इस चिकित्सा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसकी अधिकांश औषधियां पूर्णरूप से हानिरहित व प्रभावी होती हैं।
अगर कभी असावधानीवश अधिक मात्रा में सेवन भी हो जाए तो किसी प्रकार का कोई ‘रिएक्शन’ नहीं होता।
आयुर्वेद की प्रभावी उपयोगिता के कारणों से इस समय आयुर्वेद की औषधियों की मांग तेजी से बढ़ती जा रही हैं। कुछ असावधानी व कुछ जानकारी न होने के कारणों से आयुर्वेदिक औषधियों का जब कारगर प्रभाव दिखाई नहीं देता तो लोग इसे अविश्वसनीय मान कर त्याग देते हैं।
आयुर्वेदिक औषधियों के सेवन से पूर्व अगर कुछ बातों पर ध्यान दिया जाय तो निश्चय ही उसकी उपयोगिता हमें स्पष्ट रूप से दिखाई देगी।
बाजार में दो प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियां होती हैं, एक तो शास्त्रोक्त और दूसरी पेटेण्ट औषधियां। शास्त्रोक्त औषधियां प्राचीन आयुर्वेेदिक ग्रंथों के आधार पर बनायी जाती हैं जिनको हमारे वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों ने काफी गहन अध्ययन-शोध के बाद लिखा था। पेटेण्ट औषधियां वे होती हैं जिन्हें औषधि बनाने वाली कंपनियां अपने शोध (रिसर्च) के आधार पर तैयार करवाती हैं।
पेटेण्ट औषधियों की प्रमाणिकता दवा की कंपनी के अनुसार ही हुआ करती हैं, अतएव एक ही बीमारी की अलग-अलग पेटेण्ट औषधियों में अलग-अलग गुण-दोष पाये जाते हैं। इसके विपरीत शास्त्रोक्त औषधियों में ये बातें नहीं होती। उसका निर्माण कोई वैद्य करे या कंपनी, सबमें गुण एक जैसा ही होता है।
विज्ञापनों की तड़क-भड़क के अनुसार पेटेण्ट औषधियों में वे सभी गुण हों, जो बताये जाते हैं, आवश्यक नहीं हैं। आजकल शक्तिवर्द्धक एवं बलवर्द्धक टानिकों के नाम से काफी औषधियां बाजार में आती हैं जिनका आंख मूंदकर अंधाधुंध सेवन करना अति हानिप्रद भी हो सकता है।
बलवर्द्धक औषधियों के अधिक सेवन से कब्ज होने का भय बना रहता है। कई औषधियां बाजार में ऐसी भी मिलती हैं जिनमें अफीम जैसी नशीली वस्तुएं मिली होती हैं जिनके सेवन से उदर की कई बीमारियां हो सकती हैं और नशे की बुरी लत भी लग सकती हैं। हमेशा अनुभवी चिकित्सक से सलाह लेकर ही औषधियों को खरीदना चाहिए।
बाजार से औषधि खरीदते समय यह अवश्य ही ध्यान रखें कि कोई भी चूर्ण एक वर्ष से अधिक पुराना न हो। इसी प्रकार गोली या टेबलेट दो वर्ष से अधिक पुरानी न ही लें तो अच्छा है।आसव-अरिष्ट (लिक्विड) जितना पुराना होगा, उतना ही उसमें अधिक प्रभाव संचित होगा। इसी प्रकार आयुर्वेद में पारे से बनी औषधियां जिन्हें ‘रस’ कहा जाता है, आदि जितने पुराने होंगे, उतने ही अच्छे होते हैं।
वर्षा ऋतु में अगर आप आयुर्वेद की औषधियां खरीदने जा रहे हैं तो गोलियों एवं चूर्ण की शीशियों की सील भी अवश्य चेक कर लें, कारण वर्षा की आर्द्रता के कारण कभी-कभी चूर्ण में फफूंदी भी लग जाती है। वैसा चूर्ण प्रयोग न करें। खरीदते समय दवाओं का बैच नंबर भी अवश्य ही देख लेना चाहिए। इससे दवा के नये व पुराने होने का अंदाज भी लग जाता है।
आयुर्वेद की दवाएं छपे मूल्य पर ही मिला करती हैं, अत: छपे मूल्य से अधिक पैसा दुकानदार को न दें।
बाजार की अपेक्षा घर पर बनाये गये चूर्ण अधिक प्रभावशाली हुआ करते हैं। चूर्ण में दी जाने वाली घटकों की मात्रा के विषय में किसी अनुभवी वैद्य से जानकारी ली जा सकती है। चूर्ण में सम्मिलित की जाने वाली औषधियां प्राय: पनसारी या जड़ीबूटी विक्रेता के पास मिल जाती हैं। जड़ी-बूटी खरीदते समय उसकी शुद्धता का परीक्षण अवश्य कर लेना चाहिए।
कस्तूरी मृग जंगलों में इस समय प्राय: मिलते ही नहीं हैं परन्तु कस्तूरी फिर भी हर दुकान पर मिल जाती हैं। इसका रहस्य तो सिर्फ भगवान् ही जान सकते हैं। इसी तरह वंशलोचन भी असली-नकली होता है, अत: इसको खरीदते समय दुकानदार से गंभीरतापूर्वक बात अवश्य कर लें। अजवाइन के स्थान पर अजमोदा तथा काले जीरे के स्थान पर सफेद जीरा भी प्राय: दुकानदार दे दिया करते हैं, अत: औषधियों के घटक खरीदते समय इनका ध्यान अवश्य रखना
चाहिए।
बबूल गोंद की जगह ढाक की गोंद दे दी जाती है। बबूल की असली गोंद गरम घी में डालते ही फूल जाती है। आयुर्वेद के कुछ शास्त्रीय योगों में कुचला, संखिया, अफीम, भांग, धतूरा आदि जैसी चीजें भी पड़ती है, अत: ऐसी दवाओं के प्रयोग में काफी सावधानी बरतनी होती है। अपने वैद्य या चिकित्सक की सलाह पर ही उचित अनुपान अर्थात् जिसके साथ खाना है, के साथ उचित मात्रा में ही लेनी चाहिए।
आयुर्वेद की बलवर्द्धक व शक्तिवर्द्धक औषधियों का सेवन प्राय: शीतऋतु में ही उचित अनुपान के साथ करना चाहिए। इसके साथ ही सेवनकाल में दूध, घी, सूखे मेवों आदि का सेवन बढ़ा देना चाहिए। उपरोक्त बातों पर ध्यान रखकर आयुर्वेद का पूरा लाभ उठाया जा सकता है।
-आनंद कु. अनंत