Friday, May 3, 2024

भारत के वैभव और समृद्ध इतिहास का प्रदर्शन करता कोणार्क का चक्र

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भारत की राजधानी नई दिल्ली में आयोजित जी 20 समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहाँ सभी विदेशी राष्ट्राध्यक्षों का स्वागत किया, वहाँ पीछे ओडिशा में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर के चक्र की प्रतिमूर्ति बनी हुई थी। इसने सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया। असल में जी 20 के जरिए मोदी सरकार ने भारत की संस्कृति का भी प्रचार-प्रसार किया और उसके तहत ही ऐसा किया गया था। एक तरह से अब कोणार्क का चक्र, पहिया, अब वैश्विक हो गया है और इसे एक बड़ी पहचान मिली है, सम्मान मिला है।

ओडिशा के कोणार्क में स्थित इस मंदिर को पूर्वी गंगवंश के राजा नरसिंह देव ने 13वीं शताब्दी के मध्य में बनवाया था। इसे इसकी संरचना और कलाकृतियों के लिए जाना जाता है। 19वीं शताब्दी के इतिहासकार जेम्स फर्ग्यूसन ने कहा था कि जितने मंदिर शेष भारत में हैं, उससे ज्यादा अकेले ओडिशा में हैं। कोणार्क के सूर्य मंदिर के ऊपरी हिस्सा अब नहीं है, लेकिन फिर भी इसकी भव्यता कम नहीं हुई है। कोणार्क नाम के पीछे भी एक कारण है।

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जहाँ ‘अर्क का अर्थ सूर्य है, वहीं ‘कोण का मतलब अंग्रेजी वाला एंगल। यूरोप से आने वाले यात्रियों ने इस मंदिर को ‘काला पैगोडा कहा था। एशिया में बड़ी-बड़ी धार्मिक संरचनाओं को ‘पैगोडा कहा जाता था। कोणार्क में भव्य मंदिर भले ही बाद में बना हो, इसका महत्व पुराणों में भी वर्णित है। ब्रह्म पुराण में लिखा है कि कोणादित्य (कोणार्क) उत्कल (ओडिशा) में भगवान सूर्य के भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल है। एक और कहानी है सूर्य उपासना की, जो भविष्य पुराण और साम्ब पुराण में वर्णित है।

भगवान श्रीकृष्ण और जाम्बवती का एक बेटा था, साम्ब। भगवान श्रीकृष्ण की पत्नियाँ जब स्नान कर रही थीं, तब नारद जी के कहने पर साम्ब वहाँ पहुँच गया था। इस कारण श्रीकृष्ण ने उसे कुष्ठ रोग से ग्रसित होने का श्राप दिया। साम्ब ने स्वयं के निर्दोष होने की बात साबित की, लेकिन श्राप वापस नहीं लिया जा सकता था। अत:, उसे भगवान सूर्य की आराधना करने को कहा गया। सूर्य को चर्मरोग का हरण करने वाला माना जाता है।

आज विज्ञान भी मानता है कि सूर्य के प्रकाश से चमड़े की कई बीमारियों में लाभ हो सकता है। साम्ब को मित्रवन में चंद्रभागा नदी के तट पर तपस्या करने के लिए कहा गया। 12 वर्षों के बाद सूर्यदेव की कृपा से जब उसकी बीमारी ठीक हुई, तब उसने सूर्य मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। हालाँकि, स्थानीय ब्राह्मणों के इनकार के बाद उसने शकद्वीप (ईरान/पर्शिया) से पारसी पुजारियों को लेकर आना पड़ा, जिसे मागी कहते हैं। भगवान सूर्य की तस्वीर में बूट्स देख सकते हैं आप यहाँ, जो मध्य एशियाई निर्माण कला का प्रभाव है। मध्य एशिया से प्रवासी यहाँ पहली शताब्दी में ही आए थे।

साम्ब के तपस्या का जो स्थल है, उसे साम्बपुर के नाम से जाना गया। ये जगह अभी पाकिस्तान में स्थित मुल्तान में है। चंद्रभागा नदी, चेनाब का ही प्राचीन नाम था। वहीं कोणार्क में समुद्र द्वारा बनाया गया एक झील भी है, जिसे ‘चंद्रभागा नाम से जाना गया। जगन्नाथपुरी का इतिहास समेटे ओडिशा के प्राचीन ताड़पत्र वाले दस्तावेज ‘मदल पंजी में लिखा है कि राजा पुरंदर केसरी ने कोणार्क मंदिर बनवाया। केसरी वंश को हराने वाले गंग वंश ने भी कोणार्क देवता के सामने अपना सिर झुकाया। नरसिंहदेव (1238-64) ने यहाँ भव्य मंदिर बनवाया।

16वीं शताब्दी तक इस मंदिर की लोकप्रियता कई सीमाओं को पार कर चुकी थी। बंगाल के वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु भी यहाँ पहुँचे थे। वो पुरी भी तीर्थयात्रा के लिए गए थे। अकबर के दरबारी अबुल फज़ल तक ने लिखा है कि कैसे ये इतना भव्य मंदिर है कि जो देखता है वो बस देखता ही रह जाता है। जेम्स फ़ग्र्यूशन ने शिखर की ऊँचाई 45.72 मीटर होने का अंदाज़ा लगाया था। मुख्य मंदिर की बात करें तो इसे एक विशाल रथ के रूप में बनवाया गया था, जिसमें 12 चक्के हैं। साथ ही इसमें 7 सजे-धजे घोड़ों को दौड़ते हुए दर्शाया गया है।

मंदिर में कई कलाकृतियाँ हैं, जिनमें भगवान सूर्य और अन्य देवी-देवताओं के साथ-साथ नृत्यांगनाओं, पक्षियों और जानवरों तक को दिखाया गया है। शेर, हाथी और घोड़ों की मूर्तियाँ हैं दीवारों में। जिराफ, ऊँट, हिरन, बाघ, सूअर, बन्दर और बैल भी हैं।

इन पहियों का बड़ा महत्व है। इस चक्र में 8 बाहरी और 8 भीतरी तीलियाँ हैं। 12 जोड़े पहिये साल के 12 महीनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। साथ ही 8 तीलियाँ दिन के 8 पहर को दिखाती हैं। सूर्य की स्थिति के हिसाब से समय बताने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता था। इसे ऐसे तैयार किया गया था कि सूर्य का प्रकाश भी इससे पास हो और जो छाया बनती थी, उसका इस्तेमाल समय देखने के रूप में किया जाता था। पृथ्वी, सूर्य और चन्द्रमा की गतियों को ध्यान में रखते हुए इसे बनाया गया था, एक के रूप में।

कई धार्मिक समारोहों के लिए भी समय की गणना इसका इस्तेमाल कर के की जाती थी। इन पहियों का डायमीटर 9 फ़ीट 9 इंच है। भारत के करेंसी नोट्स पर भी आप कोणार्क के इस चक्र को देख सकते हैं। इसकी 24 तीलियाँ दिन-रात के 24 घंटों को दर्शाते हैं। यानी, खगोलीय और वैज्ञानिक गणनाओं को ध्यान में रखा गया था इस पहिये के निर्माण के समय। ऐसा नहीं कि सिर्फ मूर्तिकारों ने इसे बना दिया। विद्वानों की देखरेख में सारा काम किया गया था।

प्रश्न उठता है कि पहिये की परछाई से समय कैसे पता चलेगा? इसके लिए पहियों के बीच में ऊँगली रखी जाती है और उसकी छाया से समय पता चलता है। 12 पहिये 12 राशियों को भी दिखाते हैं। इसे कानून का पहिया भी कहा जाता है। ये जीवन चक्र के लगातार चलायमान होने को भी दर्शाता है। पतली वाली तीलियाँ डेढ़ घंटे (90 मिनट) के समय को बताती हैं। ये कुछ वैसा ही है, जैसे आजकल हम घड़ी देखते हैं। ये अध्यात्म ही नहीं, बल्कि उसके साथ-साथ विज्ञान का भी मिश्रण है।

साथ ही नाग और नाग कन्याओं को दिखाया गया है, आधा मनुष्य और आधा साँप के रूप में। यह वही चक्र है, जिसके सामने जी 20 नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाथ मिलाया, उनका स्वागत किया, तस्वीरें क्लिक करवाईं। इस पहिये की पतली वाली तीलियों में 30 दाने (मनके) बने हुए हैं। साथ ही कमल के फूल की पत्तियाँ बनी हुई हैं। वहीं कुछ पहियों में नृत्य करती हुई आकृतियों को एकदम साम्य में दिखाया गया है।

इसके केंद्र में कई कन्याओं की आकृतियाँ हैं, कुछ अन्य आकृतियाँ भी हैं। शिव-पार्वती, बाँसुरी बजाते श्रीकृष्ण, और हाथी पर बैठे एक राजा की भी मूर्ति है जिसके सामने एक समूह खड़ा है। आज यही चक्र भारत की शान बन कर दुनिया के सामने हमारे वैभव और हमारे समृद्ध इतिहास का प्रदर्शन कर रहा है।

-रामस्वरूप रावतसरे

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