महाकुम्भ। भक्ति वेदान्त नगर काशी शिविर में स्वामी डॉ0 रामकमलदास वेदान्ती ने शुक्रवार को भगवान राम के अवतार की अत्यन्त दिव्य एवं मधुर कथा को सुनाते हुए कहा की मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ जीवन है। 84 लाख योनियों को भोगने के बाद ईश्वर की कृपा से हमें यह अलौकिक जीवन प्राप्त होता है। मनुष्य अपनी साधना और परिश्रम से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष पुरूषार्थों के साथ-साथ ईश्वर को भी प्राप्त कर सकता है। महाराज मनु और सतरूपा ने कठोर साधना करके निर्गुण निराकार परमात्मा का न केवल दर्शन प्राप्त किया अपितु उन्होंने भगवान को ही अपने पुत्र के रूप में प्राप्त कर लिया।
स्वामी श्री वेदान्ती ने अपने कथाक्रम में बताया कि रामायण में 2 महत्वपूर्ण पात्र है उनमें एक है राजा दशरथ और दूसरा पात्र दशानन इन दोनों पात्र के प्रारम्भ में दश का अंक जुड़ा हुआ है। जिसका अर्थ है दस इन्द्रियां। जिस मनुष्य की दसों इन्द्रियां ईश्वर साधना में लगी हुई है उसी के हृदय और आंगन में भगवानद प्रगट हो जाते हैं और जिस व्यक्ति ने अपनी इन्द्रियों को विषयभोगों में लगाया हुआ है वह प्राणी रावण के समान है। उसके घर में सुख और शान्ति को नष्ट करने वाला मेघनाद की तरह होता है। राजा दशरथ का सम्पूर्ण जीचन राम प्रेम में डूबा रहा इसलिए उनके घर में ईश्वर 4 पुत्रों के रूप् में प्रगट होकर उनके आनन्द को अनन्त गुना बढ़ा देते है।
उन्होंने बताया कि भगवान राम सनातन संस्कृति की आत्मा हैं, यदि मनुष्य अपने जीवन में भगवान राम के पावन पवित्र आचरणों को उतार लें तो उसका जीवन निश्चित रूप से सार्थक हो जाएगा। आज की कथा के अंत में भगवान श्रीराम के प्राकट्य पर बधाईयां गाकर कथा को अत्यंत भक्तिमय बना दिया गया।